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जानने की आदत छोड़ो, जाना तो बहुत है कि पतवारें कैसे चलाई जाती हैं। हर आदमी को धर्म-कर्म का ज्ञान बहुत है। जैसे अधिक खाने से अजीर्ण हो जाता है, उसी तरह अधिक ज्ञान भी अजीर्ण का कारण बनता है। यह मत सोचो कि औरों के पास जाएँ और पूछे कि पतवारें कैसे चलाई जाती हैं, नौका कैसे खेयी जाती है। अब तो सिर्फ लंगर खोलने की ज़रूरत है। पार होने के लिए जानने की ज़रूरत नहीं है, केवल लंगर खोलने की ज़रूरत है। पतवारें तो पूरी ज़िन्दगी चला ली, आज तक पार नहीं हुए। अब अगर कुछ करना है तो मूर्छा के लंगर खोलो।
धर्म की, पुण्य की पतवारें तो वर्षों से चला रहे हो, पर अगर जीवन की नौका कहीं पहँच नहीं पा रही है, तो पहले यह पता लगाओ कि क्या चीज आड़े आ रही है। कौनसी कमी है जिसके कारण नौका आगे नहीं बढ़ रही है। ऐसा ही हुआ। चार शराबी चाँदनी रात में नौका-विहार करने गए। शराब का नशा! रात भर पतवारें चलाते रहे। जब सुबह करीब आई तो थोड़ा नशा उतरा तो एक ने दूसरे से पूछा कि जरा पता करो कि हम कितनी दूर का सफर कर चुके हैं। उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि नौका किनारे पर पहुंच चुकी थी। यह तो बाद में मालूम हुआ कि नाव का लंगर डाला हुआ था, सो नाव कहीं गई ही नहीं, वो एक जगह ही खड़ी थी। रात भर पतवारें चलती रहीं। लेकिन फायदा कुछ न हुआ, क्योंकि आख़िर पहुँचे तो कहीं भी नहीं। जहाँ से रवाना हुए थे, वहीं रह गए। इसलिए जीवन का लंगर खोलो। जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों को आत्मसात् करने के लिए जानने की नहीं, लंगरों को खोलने की जरूरत है।
जीवन के परिभ्रमण होने के मुख्य कारण क्या हैं? मुख्य कारण है व्यक्ति ने लंगर नहीं खोला। व्यक्ति ने जंजीरें और बेड़ियाँ नहीं खोलीं। इसका कारण भी है। बेड़ियों की, जंजीरों की झंकार बड़ा सुख देती है, बड़ा रस देती हैं, आनन्द देती है।
किनारे पर आदमी सुरक्षित है। नदी में उतरोगे, तो तूफान का डर भी रहेगा, मगर नदी में उतरे बगैर पार कैसे होओगे? तब जंजीरों को खोलना पड़ेगा, बेड़ियों को तोड़ना पड़ेगा। मनुष्य की परेशानी यही है कि उसके पाँव जकड़े हुए हैं। इतनी आसक्ति है कि व्यक्ति प्रार्थना तो वीतरागता की करता है, मगर अपने पाँवों में पड़ी बेड़ी को नहीं तोड़ पाता।अगर लंगर न खुला तो नौका तो चलने से रही। तब पतवारों का कोई अर्थ ही नहीं है। आपका कोई मार्गदर्शन करने को तैयार है, मगर आप कदम ही नहीं उठा रहे हो तो उसका मार्गदर्शन आपके किस काम का।
आदमी ने ज़िन्दगी को खिचड़ी बना दिया है। हम क्रोध भी करना चाहेंगे और क्षमा से भी ममत्व रखेंगे। हमारा जीवन पूरी तरह विरोधाभास पर चलने लगा है। ज्ञानियों ने एक शब्द दिया है व्रत। अब जिनको 'गलियाँ' निकालने में महारथ
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