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________________ जिप्सी के लिए कम-से-कम छ: महीने प्रतीक्षा करनी होगी। लेकिन वह व्यक्ति बोला, तुम्हें जितना पैसा चाहिए मैं दूंगा, फिर भी प्रबंधक ने इन्कार कर दिया। आगन्तुक तैश में आ गया। वह अपने ब्रीफकेस में जो रुपये भरकर लाया था, वहीं उस प्रबंधक के सामने टेबल के नीचे रखी हुई रद्दी की टोकरी में डाल दिए और चला गया। प्रबंधक बहुत हैरान हुआ, थोड़ा चौंका भी कि जिप्सी के प्रति इतनी चाहत! जिप्सी को इतना पसंद करने वाला तो आज तक कोई न मिला। और इतना तैश, इतना क्रोध कि जिप्सी न मिली तो दो लाख रु. इस तरह रद्दी की टोकरी में फेंक दिए। उसने कुछ सोचा और अपने कर्मचारियों को निर्देश दिया कि कल सुबह तक उस व्यक्ति के घर कार पहुँचा दी जाए। लेकिन साँझ होने पर वह प्रबंधक उस व्यक्ति के यहाँ दौड़ा-दौड़ा पहुँचा और जा कर कहा, यह बड़ी हैरानी की बात है तुमने जो नोट रद्दी की टोकरी में डाले थे वे सब-के-सब नकली निकले। उसने कहा वे नकली थे इसीलिए तो मैंने रद्दी की टोकरी में फैंके थे। अगर असली होते तो अपने साथ वापस न ले आता। नकली के नकलीपन का बोध होने से वह चीज छूट जाती है। नहीं तो किससे धन, सम्पत्ति और परिवार छूटते हैं? वह तो मूर्च्छित ही रहता है। लेकिन उससे छूट जाते हैं, जो जान लेता है कि माँ जन्म लेने का मार्ग भर है। जो जान लेता है कि मकान तो रेत का घरौंदा है और ये हीरे तो कंकर की तरह हैं, मैं ही इन्हें मूल्य दे रहा हूँ। वस्तु अर्थहीन हो जाती है जब व्यक्ति की दृष्टि उससे पलट जाती है। मैं संन्यास या वानप्रस्थ की बात कहता हूँ तो उसका एकमात्र अर्थ यही है कि तुम्हें रेत का घर घरौंदा लग जाए। तुम्हारे लिए हीरे काँच के कंचे हो जाएँ। कल मैं एक कविता पढ़ रहा था जिसमें पक्षी को प्रतीक बनाकर जीवन, संन्यास और अध्यात्म तथा मुक्ति के सभी संदेश दिये गए थे। कवि ने गाया- पक्षी आसमान में उड़ता है, धरती पर आता है, रजकण, तृण, अन्न सभी के लिए अपनी यात्रा करता है, जब जहाँ चाहे वहाँ पहुँच ही जाता है। लेकिन अपने विभ्रम, अपने प्रमाद के कारण एक दिन पंछी पिंजरे में आ जाता है। उसे पता चलता है कि वह छला गया है, उसके साथ प्रवंचना हुई है। एक दिन पिंजरे का दरवाजा खुल जाता है। पंछी पुन:आकाश की ओर उड़ जाता है। वह जान लेता है कि आकाश, मुक्ति ही मेरे जीवन की एकमात्र स्वतंत्रता है, मेरे जीवन का संबल है, जीवन का मुक्ति-सुख है। तुम अपना स्वर्ण-पिंजर रखो, मेरा पथ तो अब मुक्त गगन है। पंछी कह रहा है मालिक, तुम अपने इस सोने के पिंजरे को अपने ही पास रखो। अब मेरा पथ तो यह मुक्त आकाश है। मुक्ति ही मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य और मार्ग है। 1101 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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