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________________ मेरा पथ है मुक्त गगन P राजर्षि भर्तृहरि के जीवन की घटना है। वे नगर से दूर किसी पहाड़ी की चोटी पर ध्यानमग्न बैठे थे। ध्यान से उनकी आँखें खुलीं। उन्होंने पहाड़ी से नीचे एक विशाल, अनुपम हीरा देखा। जिसे देखकर उनके मन में विचार आया कि राजकोष में तो न जाने कितने बेशकीमती हीरे हैं, लेकिन ऐसा अनमोल हीरा जिसकी आभा अप्रतिम है, यह तो अपनी तुलना में अतुलनीय है। भर्तृहरि के मन में आया कि मैं इस हीरे को ले लँ। फिर विचार आया कि अरे मैं तो संन्यासी हूँ। मुझे हीरों से क्या काम, महामार्ग के पथिक को हीरों के लिए क्या लालायित होना। पर मन, यह तो चंचल है; हीरे को उठाने के लिए फिर प्रेरित करता है। उनके मन में इस तरह की उधेड़बुन चल रही होती है। तभी वे देखते हैं कि पूर्व दिशा से एक सिपाही घोड़े पर सवार सरपट चला आ रहा है और उधर पश्चिम दिशा से भी एक सवार घोड़े पर बेलगाम दौड़ा आ रहा है। दोनों घुड़सवार उस बहुमूल्य हीरे के पास आकर रुक गए। दोनों ने तलवारें खींच लीं कि जो जीवित बचेगा वही हीरे का मालिक होगा। तलवारें चल पड़ी, खूब घमासान हुआ। अन्त में दोनों ने एक-दूसरे को तलवारें घोंप दीं। वहीं दोनों गिर पड़े। भर्तृहरि सारी घटना देख रहे थे। हीरा वहीं यथावत था लेकिन और उसे पाने को लालायित दो सिपाही अपनी जान गँवा चुके थे। 199 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003882
Book TitleBanna Hai to Bano Arihant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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