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लक्ष्य बनाएँ, पुरुषार्थ जगाएँ
हर गुरु और शिक्षक के पास शिष्य सौ आते हैं, पर अर्जुन वही बनता है, जो पूरी तन्मयता से अभ्यास करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है। अपने लक्ष्य और कार्य को इतनी गंभीरता से लीजिए कि मात्र द्रोणाचार्य ही नहीं, उनकी मिट्टी की मूर्ति भी प्रेरणा और मार्गदर्शन की रोशनी देती हुई दिखाई देने लग जाए। सफलता न मिले, तो हताश न हों। दुनिया के किसी भी श्रेष्ठ और सफल व्यक्ति की आत्मकथा पढ़कर देखें, उसे अपनी ऊँचाई और सफलता पाने से पहले सौ असफलताओं का सामना करना
पड़ा है। न कठिनाइयों से घबराएँ नहीं।
आपका जीवन पलंग पर पड़े रहने के लिए नहीं है। अपने से आगे बढ़ चुके लोगों को देखकर प्रेरणा
चलिए सफलता के रास्ते
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