________________
दिन फिर पूछा लेकिन पुनः यही जवाब मिला कि गुरुजी कोशिश कर रहा हूँ। युधिष्ठिर राजकुमार थे इसलिए गुरु भी अधिक बोल न पाते थे। तीन-चार दिन तक भी जब पाठ न सुना पाए तो गुरु को गुस्सा आ गया और उन्होंने युधिष्ठिर के कान मरोड़ कर दो थप्पड़ लगा दिए । जैसे ही थप्पड़ पड़े वे चुपचाप जाकर बैठ गए । गुरुजी ने डाँटते हुए कहा - बता याद हुआ कि नहीं। युधिष्ठिर खड़े हुए, हाथ जोड़कर कहा - गुरुदेव अब मुझे पाठ याद हो गया है। गुरुजी ने कहा - लातों के भूत बातों से नहीं मानते । दो चाँटे पड़े तब ही तुम्हें अक्ल आई। युधिष्ठिर ने कहा – गुरुदेव पाठ तो मुझे लगा कि मुझे उसी समय याद हो गया जिस समय आपने विद्यार्थियों को प्रदान किया था। लेकिन वह पाठ कैसा पाठ कहलाएगा जो हमारे जीवन में चरितार्थ न हो पाए। अभी तक कोई ऐसा प्रसंग ही न बना था जिसकी वजह से मैं कह सकता कि मुझे पाठ याद हो गया। आज ऐसा प्रसंग बना गुरुदेव आपने मुझे डाँट लगाई, मुझे चाँटा मारा तब मैंने अपने मन को समझा, अपने धैर्य को पहचानने की कोशिश की, मुझे लगा मुझे गुरुजी की मार से गुस्सा नहीं आया। तब मुझे लगा क्षमाम् कुरु - मैंने क्षमा कर दिया। क्षमातत्त्व मेरे जीवन में आचरित हो गया है. तब मैंने तत्काल कह दिया कि मुझे पाठ याद हो गया है।
कहा जाता है कि गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर की पहली दफ़ा पिटाई की थी जो अंतिम पिटाई भी साबित हुई। उन्हें अहसास हो गया कि यह बालक केवल पाठों को याद करने के लिए पाठशाला में नहीं आया है। यह जीवन के पाठ सीखने के लिए विद्यालय में आया है। युधिष्ठिर पांडवों के मध्य बहुत अधिक निपुण नहीं रहे थे, अर्जुन की तरह शस्त्र-विद्या नहीं सीख पाए थे, भीम की तरह ताक़त नहीं थी। इसके बावजूद द्रोण उनकी बहुत इज़्ज़त करते थे। इतना ही नहीं, इसकी असली परीक्षा तब होती है जब युद्ध के मैदान में महाभारत के प्रांगण में हाथी का वध कर दिया जाता है तब कहा जाता है - अश्वत्थामा हतः नरो वा कुंजरो वा । भीम चिल्लाकर कहता है अश्वत्थामा मारा गया, अश्वत्थामा मारा गया। तब गुरु द्रोण कहते हैं मुझे विश्वास नहीं होता कि मेरा बेटा मारा गया हो। तुम लोगों का तो मुझे भरोसा नहीं है, लेकिन अगर युधिष्ठिर कह दे कि अश्वत्थामा मारा गया तो मैं इसी समय अपने अस्त्र-शस्त्रों का त्याग कर दूंगा। सबके सामने समस्या खड़ी हो जाती है क्योंकि युधिष्ठिर किसी भी स्थिति में झूठ नहीं बोलते।
७५
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org