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महावीर के सामने आ जाती तो महावीर यही कहते - यदि मैंने मन-वचन-काया से स्वप्न में भी, विचार में भी किसी का वध किया हो, किसी को कष्ट पहुँचाया हो तो इस दुनिया से मेरा नामोनिशान मिट जाए। यदि किसी चींटी के भी नुकसान का विकल्प या विचार भी मेरे मन में आया हो तो मेरा ही नामोनिशान मिट जाए। जो व्यक्ति अहिंसा को इतनी बारीकी के साथ जीकर चला गया वह निश्चित ही सारे संसार का मित्र है, सारे संसार का कल्याण चाहने वाला है।
कहते हैं महावीर का महाविषधर सर्प चंडकौशिक से सामना होता है। चंडकौशिक उन्हें डसने लगता है पर महावीर करुणा-मूर्ति बने रहते हैं। उनकी करुणा-दृष्टि चंडकौशिक को बदल देती है। उनके चरणों से खून की बजाय दूध की धार निकल पड़ती है। हो सकता है, खून ही निकला होगा, पर चंडकौशिक को दूध की धार दिखाई देती है। वह शांत हो जाता है। वह चंडकौशिक से भद्रकौशिक हो जाता है। यह परिवर्तन है। हिंसा पर अहिंसा की विजय है। क्रोध पर क्षमा की जीत है। सामने महावीर हों तो चंडकौशिक बदलेगा, बुद्ध हों तो अंगुलिमाल सुधरेगा। जिसके हृदय में जितनी महान करुणा होगी, उसके द्वारा उतना ही चमत्कारिक परिणाम आएगां। __महावीर वह तीर्थंकर हैं जिन्हें हम विश्व-शांति, विश्व-प्रेम का प्रवर्तक और विश्व-भाईचारा का पुरोधा कहेंगे, अग्रगण्य और आदिपुरुष कहेंगे। हम सभी अहिंसा के हिमायती हैं। जीवन और जगत का प्रबंधन करने के लिए, जीवन और जगत के संबंधों को वीणा के तारों की तरह साधने के लिए हमें अहिंसा की शरण में आना ही होगा। केवल पाठ्यपुस्तकों की शिक्षा से बहुत कुछ होने वाला नहीं है, हम सभी को जीवन के पाठ पढ़ने होंगे। जीवन की पाठशाला में अहिंसा का पाठ पढ़ना होगा । जीवन की पाठशाला यही सिखाती है कि जीवन का पहला चरण ही अहिंसा से जुड़ा होना चाहिए।
कहते हैं कि कौरव और पांडव गुरु द्रोणाचार्य के पास शिक्षा पाते थे। गुरु द्रोण ने पाठ दिया - क्षमाम् कुरु - क्षमा करो। सरल-सा पाठ था, दूसरे दिन सभी ने सुना दिया, लेकिन अकेला युधिष्ठिर यह पाठ न सुना सका । गुरु ने कहा - तुमने अपना पाठ नहीं सुनाया। उत्तर मिला - गुरुजी कोशिश कर रहा हूँ। गुरु ने सोचा - मंदबुद्धि बालक होगा सो याद नहीं कर पाया होगा। दूसरे
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