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________________ बोलना चाहिए जब इज़्ज़त दाँव पर लग जाए या फाँसी का फंदा कसने वाला हो। वैसे तो सबसे भली चुप । क्योंकि सच बोलना नहीं चाहते और झूठ बोलने की इच्छा नहीं है सो मौन । जहाँ तक संभव हो सत्य बोलने का प्रयास ही करना चाहिए, पर ऐसा सत्य भी मत बोलो जो दूसरों के दिलों को ठेस पहुँचाए । इसलिए अहिंसा और सत्य दोनों को साथ रहना चाहिए । अहिंसामूलक सत्य हो । किसी की हिंसा हो जाए ऐसा सत्य न हो। ऐसा सच भी न बोलो कि दूसरे को कारागार में डाल दे। प्रभु ने हमें बुद्धि दी है इसका इस्तेमाल करते हुए विवेकपूर्वक सत्य बोलें और आवश्यकता पड़ने पर मौन भी रहें । सत्य केवल बोलने के लिए नहीं, जीने के लिए होता है । I इस तरह तीसरा व्रत अचौर्य है अर्थात् बिना दिए किसी वस्तु को ग्रहण करना चोरी है । अमानत में खयानत चोरी है। भगवान कहते हैं बिना स्वीकृति के ली गई चीज़ तुम्हारे लिए चोरी का दोष बन जाएगा। इसलिए इज़ाज़त ज़रूरी है। चोरी भी कई तरह की होती है - किसी भी वस्तु को बिना पूछे ले लेना द्रव्यचोरी है। किसी की जमीन को हड़प लेना, उस पर कब्जा कर लेना, क्षेत्र - चोरी हो गई। किसी से पैसा लिया है और लौटाते समय, कर्मचारी को पूरे दिनों के पैसे न देना यह काल - चोरी हो गई । हमने उसका समय एक दिन आगे-पीछे करके चुरा लिया। ब्याज पर पैसे देने वाले भी एक दिन आगे-पीछे करके काल- चोरी कर लेते हैं । दूसरे के विचारों को, भावों को अपने भाव - विचार बनाकर कह देना भाव-चोरी हो गई । या तो चिंतन-मनन के द्वारा अपने निष्कर्ष निकाले जाएँ तब बातों को कहा जाए अथवा आपको पसंद आये हैं तो जिसके विचार हैं उनके नाम का स्पष्ट उल्लेख कर पेश किया जाए अन्यथा भाव - चोरी का दोष लगेगा । सत्य और अचौर्य जब आपस में जुड़ेंगे तभी प्रामाणिकता आएगी । यह व्यक्ति का सामाजिक व नैतिक मूल्य है कि अर्जन तो करें, पर व्यर्थ के झूठे प्रपंच न करें। चौथा व्रत अपरिग्रह है अर्थात् सीमित मात्रा में परिग्रह रखा जाए । अलमारियों में कितना भरेंगे ? घर को कितना सजायेंगे ? परिग्रह-परिमाण - व्रत अर्थात् अपरिग्रह को जीने के लिए आवश्यकतानुसार ही वस्तुओं का संग्रह हो । ६८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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