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________________ अहिंसा के सन्दर्भ में - जो लोग मांस-मदिरा का उपयोग करते हैं उनके लिए यही कहना है कि सभी को जीने का अधिकार है। क्या हम चाहते हैं कि कोई हमारी निंदा करे, मारपीट करे, अपमान या उपेक्षा करे ? हम अपने लिए तो चाहते हैं कि कोई हमारे साथ ऐसा न करे, पर जब हम दूसरों के साथ ऐसा करें तो ? इसका मतलब है कि हम अपने लिए तो अहिंसामूलक वातावरण चाहते हैं पर दूसरों के साथ हिंसामूलक व्यवहार करने में हिचकिचाते नहीं हैं। कौन है जो खुद को नुकसान पहुंचाना चाहता है लेकिन दूसरों को हम नुकसान पहुँचा ही देते हैं। गैर-शाकाहारियों से मैं कहना चाहता हूँ कि आज दुनिया में आवागमन के इतने अधिक साधन हैं कि खाद्यान्न एक स्थान से दूसरे स्थान तक सहजता से पहुँचाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी किसी जीव की हत्या क्यों करे ? जो मांस का उपयोग करते हैं क्या उन्होंने कभी किसी सागर के किनारे खड़े होकर अन्य मछलियों के साथ आमोद-प्रमोद नहीं किया ? उनसे प्रेम नहीं किया ? जो व्यक्ति बकरों को काटते हैं क्या उन्होंने कभी उसकी देह पर प्यार से हाथ नहीं सहलाया ? जब प्यार से सहलाया होगा तो उन्हें ज़रूर अहसास हुआ होगा कि इस प्यार को वह मूक प्राणी भी महसूस कर रहा है। ऐसे में वह उनकी हत्या कैसे कर सकता है। धर्म तो इस बात की कभी इज़ाज़त देता ही नहीं है, मानवीय पक्ष से भी यह उचित नहीं है कि साग-सब्जियों के उपलब्ध होते हुए भी मांसमछली-मुर्गे का उपयोग करें। हमें मछली खाने की बजाय उसे पानी में तैरते हुए देखने का आनन्द लेना चाहिए। किसी पक्षी पर तीर चलाने की बजाय उसे खुले आकाश में उड़ते हुए देखने का मज़ा लेना चाहिए क्योंकि कुदरत हमें उनके ज़रिये आनन्द देना चाहती है। हर प्राणी जीना चाहता है। हमें उन्हें मारने का अधिकार तभी है जब हम उन्हें वापस जीवित करने की क्षमता रखते हों। यदि हम किसी को जीवन नहीं दे सकते तो उसे मार कैसे सकते हैं। एक माँ बच्चे को चाँटा मारती है लेकिन उसी हक के कारण जिससे वह प्यार भी करती है। अगर माँ बच्चे को प्यार नहीं करती तो उसे चाँटा मारने का अधिकार भी नहीं है। अहिंसा को हमें अधिक से अधिक जीना चाहिए, पर इसका केवल इतना अर्थ नहीं है कि हिंसा मत करो बल्कि अपने से जो कमजोर हैं उनके प्रति दयाभाव, करुणाभाव, सहयोग और दान की भावना रखें । यह अहिंसा का व्यावहारिक पक्ष है। इसीलिए कहते हैं - ५९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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