SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज लोगों में गर्मी बहुत चढ़ गई है। थोड़ी-सी बात भी सहन नहीं हो पाती। लोग बात-बात में गोली चला बैठते हैं । आज रावण का शासन आ गया है। हर वर्ष रावण के पुतले फूंकते हैं, पर फिर भी रावण मर नहीं रहा । अच्छा होगा कि हम पुतलों को फूंकने की बजाय भीतर बैठे रावण को फूंकने का जतन करें। भारत के अशोक चक्र के नीचे सत्यमेव जयते लिखा जाता है। यह नारा अब पुराना हो गया है। घिसापिटा-सा लगता है। अब नया नारा हो, नया सूक्त हो और वो हो - जिओ और जीने दो, लिव एंड लेट लिव । आपकी जिज्ञासा है कि 'जिओ और जीने दो' का सिद्धांत किसके लिए है - साधक के लिए या गृहस्थ के लिए ? ध्यान रहे सिद्धांत प्राणिमात्र के लिए होते हैं बस साधक इसे परिपूर्णता के साथ जीता है और आम व्यक्ति आंशिक रूप से जीने का प्रयत्न करता है । यह धरती 'जिओ और जीने दो' के सिद्धांत पर ही टिकी रह सकती है - मरो और मारो के सिद्धांत पर नहीं। अगर मरो और मारो का सिद्धांत चल पड़ा तो सोचिये यह धरती कितने दिन टिकी रह सकेगी। यह परम्पराओं के बुनियादी भेद हैं जिसमें एक परंपरा मरने-मारने की और दूसरी परंपरा जीओ और जीने दो की बात करती है। जो परंपरा मरने-मारने की कहते हैं वे दुनिया में मारकाट मचा देते हैं, खून-खराबा करते हैं। जबकि जिओ और जीने दो वाले कहते हैं कि तुम खुद भी शांति से जिओ और हमें भी शांति से जीने दो। न हम मरना चाहते हैं और न तुम्हें मारना चाहते हैं। लेकिन कोई हमें मारने पर आमादा हो जाए तो हिंसा की गली खोलनी पड़ सकती है, पर हिंसा इस दुनिया का समाधान नहीं है। इस दुनिया में समाधान केवल अहिंसा से ही मिल सकता है। अतीत में भी अहिंसा ही समाधान बना और भविष्य में भी यही समाधान बनेगा। ____ आज हमें आतंकवाद और उग्रवाद का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते न केवल हमारे देश को बल्कि समूचे विश्व को अपनी आधी ताक़त आतंकवाद से जूझने में लगानी पड़ रही है। कितना अच्छा हो जो ताक़त सुरक्षा पर लगाई जा रही है, अगर वही ताक़त सृजन पर लगाई जाती तो विश्व प्रगति के नये द्वार खोलता। आधी दुनिया की गरीबी मिटाई जा सकती थी। पर क्या किया जाए ? समझने को कोई तैयार ही नहीं है। Jan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy