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________________ और हम लोग धार्मिक प्रवचन कर रहे हैं, सत्संग कर रहे हैं लेकिन वही लिमिटेड लोगों के बीच। ऐसी स्थिति में हमें चाहिए कि हम अपने देश की संस्कृति और अहिंसा को पूरे विश्व तक फैलाने में अपनी भूमिका निभाएँ । आज जहाँ विश्व - शांति के लिए निःशस्त्रीकरण की, अहिंसा की और अहिंसामूलक वातावरण की आवश्यकता है वहीं अगर हम हक़ीक़त में जीवदया में विश्वास रखते हैं तो हमें चाहिए कि हम शाकाहार को अधिक से अधिक प्रोत्साहन दें । अहिंसा में आस्था रखने वाले सभी लोग संकल्प लें कि प्रतिमाह एक मांसाहारी को शाकाहारी बनाएँगे तो इस देश के जो पचास करोड़ शाकाहारी हैं उनके द्वारा आने वाले तीन साल में यह पहल ऐसा रंग ला सकती है कि पूरा भारत शाकाहारी और अहिंसा का भारत कहला सकता है। एक ऐसा देश जिसकी पहचान राजनीति, ताजमहल या कुतुबमीनार के कारण नहीं वरन् इसकी अहिंसा, इसके जीवनमूल्य, इसके प्रेमभाव और शांति के कारण होगी। भारत वह देश होगा जहाँ इन्सान के कारण किसी को भी किसी तरह का ख़तरा नहीं होगा । देश की आबोहवा बदले । हमारी सोच बदले । अहिंसा को हम अपने व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित न रखें वरन् इसे सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी फैलाएँ। हमारी दुनिया, हमारा समाज और हमारा देश अहिंसा के आधार पर ही टिक सकेगा। हिंसा और लड़ाई के बल पर न हम, न हमारा परिवार, न समाज, न देश और न संसार टिक सकता है। प्रेम और मोहब्बत की दहलीज़ पर आकर ही हम दुनिया, देश, समाज और परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं। कहते हैं : एक व्यक्ति चौराहे पर खड़ा था । लोग उसे मूर्ख समझते थे । उसने अपने आगे से किसी सेना की टुकड़ी को जाते हुए देखा। उसने पास में खड़े एक व्यक्ति से पूछा - ये लोग कहाँ जा रहे हैं? उसे ज़वाब मिला- युद्ध करने जा रहे हैं। उसने पूछा- युद्ध से क्या मिलेगा? फिर जवाब मिला- शांति मिलेगी। मूर्ख ने कहा जब युद्ध करने से शांति मिलेगी तो ये बेवकूफ़ लोग जहाँ से जा रहे हैं, वापस वहीं क्यों नहीं चले जाते । शांति पाने जा रहे हैं मगर जहाँ से जा रहे हैं वापस वहीं लौटकर आ जाएँ तो अशांति का वातावरण ही निर्मित नहीं होगा। शांति थी, शांति है और शांति बनी रहेगी। न Jain Education International - For Personal & Private Use Only YU www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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