SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्म और अहिंसा एक-दूसरे के पूरक हैं। धर्म से अहिंसा मिलेगी यह सोचने की बजाय हमें मानना चाहिए कि अहिंसा के पालन से हमारे जीवन में धर्म का आचरण होगा। अहिंसा अकेला ऐसा मन्त्र है जिसके द्वारा व्यक्ति धर्म के सम्पूर्ण स्वरूप को अपने में जी सकता है। अहिंसा वह मंत्र है जिससे सारे विश्व में प्रेम, शांति और भाईचारे की स्थापना की जा सकती है। अहिंसा अपने-आप में सम्पूर्ण व्रत, मंदिर और तीर्थ है। अहिंसा अपनेआप में एक आश्रम है। इंसान की मानसिक चेतना, वाणीगत चेतना और शरीरगत चेतना अहिंसा के द्वारा सुरक्षित और गौरवान्वित रहेगी। दुनिया में हिंसा के दो स्वरूप चल रहे हैं- एक है आतंक - जिसके नाम पर इंसान इंसान के खून का प्यासा बना हुआ है, दूसरा है मांसभक्षण - जिसमें इन्सान अपने से कमज़ोर पशु-पक्षियों का वध करके उनके मांस का उपयोग करता है। आतंकवाद में व्यक्ति अस्त्र-शस्त्र के द्वारा पूरे विश्व में आतंक और उग्रवाद फैलाकर लोगों को भयग्रस्त कर खुश होता है और मांसभक्षण के लिए लोग मूक पशु-पक्षियों को जीवन देने की बजाय उनके प्रति अदया करते हैं और उन्हीं को खा जाते हैं। हमें पूरे विश्व के प्रति जागरूक होने की ज़रूरत है क्योंकि हमें इसी विश्व में रहना है। इस पृथ्वी-ग्रह पर हम लोगों का पालन-पोषण हो रहा है तो इसकी सुरक्षा करना, सड़कें, वातावरण, नदी, जल सुरक्षित हों, प्रेममय हों यह हमारा दायित्व है। भगवान श्री महावीर ने जिस अहिंसा की बात की, आज उनके अनुयायी अहिंसा का पालन अवश्य कर रहे हैं। उनके संतजन, मुनिजन, श्रमण तो अहिंसा की ऊँचाई तक इसका पालन कर रहे हैं, यहाँ तक कि नंगे पाँव पैदल चल रहे हैं ताकि उनके द्वारा सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव की भी हिंसा न हो। लेकिन आज समस्या सूक्ष्म जीवों को बचाने की नहीं वरन् पूरे विश्व को बचाने की है। मैं तो चाहूँगा कि अहिंसा में आस्था रखने वाले मुनिजन अपने आपको केवल भारत देश तक ही सीमित न रखें वरन् पूरे विश्व में फैलने का प्रयत्न करें। पूरे विश्व में भगवान महावीर के पवित्र संदेशों को जन-जन तक पहुँचाएँ ताकि यह विश्व सुरक्षित हो सके। आज हम अपने निजी जीवन में अहिंसा का अनुपालन करने के लिए पानी को छानकर उपयोग में ले रहे हैं लेकिन पूरा विश्व जल रहा है, आतंक बढ़ रहा है ४४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy