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________________ - कम विस्तार हो सके इसका प्रयत्न करे। यह बात हमारे लिए अहमियत रख सकती है कि हम लोग पानी छानकर पिएँ, पैदल चलें अथवा हमारे द्वारा कम- -से-व हिंसा का दोषपूर्ण कार्य हो ऐसा विवेक रखा जाए लेकिन इन सबसे बढ़कर ज़रूरत है कि हम सारे विश्व में प्रेम, शांति और अहिंसा का वातावरण बनाने का प्रयत्न करें। कोई भी व्यक्ति विश्व से बड़ा नहीं हो सकता। हम सब विश्व की इकाई हैं और पूरे विश्व को सुरक्षित रखना हम लोगों का दायित्व बनता है । प्रबुद्ध लोगों को चाहिए कि वे अपने को किसी एक गाँव या शहर तक ही सीमित न रखें वरन् अपने-आपको अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृति जितना विशाल बना लें, विश्व में शांति स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाएँ । हमें वाणी, कार्य और व्यवहार के द्वारा शांति की अनुमोदना करनी होगी । सारा विश्व एकमात्र अहिंसा के धरातल पर टिक सकता है। हज़ारों वर्ष पूर्व भी मानवमात्र को अहिंसा के धरातल की आवश्यकता आई थी और आज फिर उसी अहिंसा की आवश्यकता आ पड़ी है। अहिंसा का अर्थ होता है इंसानियत का वह अनन्त प्रेम जिसमें दूर-दराज के गाँव और आम लोग सम्मिलित हो जाएँ। अहिंसा तो इतनी विराट होती है जिसमें अनन्त लोगों के प्रति अनन्त प्रेम समाहित रहता है। एक के प्रति प्रेम होना राग कहला सकता है, लेकिन अनन्त जीवों के प्रति अनन्त प्रेम का उद्भव होना, मंगल मैत्री- भाव होना अहिंसा की मूल आधारशिला है। आज आवश्यकता ही अहिंसा की है। इस विश्व को शस्त्रों के बल पर खड़ा नहीं रखा जा सकता । शस्त्र भय और अनुशासन का वातावरण निर्मित कर सकते हैं लेकिन प्रेम का नहीं । विश्व मात्र अहिंसा के बल पर ही टिका रह सकता है। घर, परिवार और समाज भी अहिंसा के बल पर ही टिके रह सकेंगे। यदि हम किसी की निंदा-चुगली करते हैं, किसी के दिल को ठेस पहुँचाते हैं, किसी का अपमान करते हैं तो ऐसा करने से घर-परिवार दुःखी होगा। समाज में भी ऐसा वातावरण बनता है तो समाज टूटेगा । विश्व में भी एक देश दूसरे देश का अपमान करेगा, आलोचना करेगा तो देश भी टूटेंगे। विश्व के साथ-साथ समाज और घर परिवार के लिए भी अहिंसामूलक वातावरण ज़रूरी है। अहिंसा धर्म की माता और पिता दोनों है। धर्म से अहिंसा का नहीं बल्कि अहिंसा से धर्म का जन्म होगा। Jain Education International For Personal & Private Use Only ४३ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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