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अगर नमेगी तो सबको प्रिय लगेगी। मित्र के साथ मित्र नम्रता से पेश आएगा तो उसको भी अच्छा लगेगा। पिता अपने छोटे से बच्चे के साथ भी नम्रता से पेश आएगा तो वह पिता भी अच्छा लगेगा। नम्रता के साथ जीवन और धर्म की गाड़ी आराम से चलेगी। जीवन में सदा नम्रता की धुन बजती रहनी चाहिए।
ज़िन्दगी आनन्द है। इसका आनन्द रोज़ लिया जाना चाहिए । जीवन में आनन्द की मस्ती किसी-न-किसी द्वार से ही आती है। आनन्द की मस्ती लेने के लिए अगर हम नमोकार मंत्र को द्वार बनाते हैं तो यह न समझ लेना कि यह मन्त्र केवल महावीर के अनुयाइयों का मन्त्र है। हमने ऐसे लाखों लोगों को नवकार मन्त्र सिखाया है जो जन्म से महावीर के अनुयायी नहीं हैं, पर कर्म से महावीर को मानते हैं।
नवकार-मन्त्र ऐसा मन्त्र है जो हमें ईश्वर या महान तत्त्व के प्रति नमन करने का भाव पैदा करता है। दोनों हाथों को जोड़कर पलकें बंद कर मस्तक झुकाकर नमन करना, समर्पण करना ही मन्त्र का अभिज्ञान है। इस मन्त्र की शुरुआत होती है - नमो अरिहंताणं से - यानी अरिहंतों को नमस्कार हो । मन्त्र का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए । मन्त्र के साथ उच्चारण-शुद्धि ज़रूरी है। जैसे कुंती और कुत्ती में केवल बिंदु का फ़र्क है, चिंता और चिता में भी केवल एक बिंदु का फ़र्क है, लेकिन बोलने की अशुद्धि से अर्थ का अनर्थ हो सकता है। उच्चारण की शुद्धि के साथ-साथ स्थान-शुद्धि, वस्त्र-शुद्धि भी होनी चाहिए। भगवान के आगे निर्वस्त्र आदमी चल जाएगा, पर अशुद्ध कपड़े पहने हुए व्यक्ति नहीं चलेगा। मुख-शुद्धि भी ज़रूरी है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति मन्त्र-जाप न करे। किसी भी प्रकार का व्यसन करने वाला व्यक्ति भी मन्त्र-जाप न करे । जैसा व्यक्ति स्वयं होगा वैसे ही जाप के परिणाम आएँगे। राम की शुद्धि राम का परिणाम देगी और रावण की अशुद्धि व्यक्ति को रावण की तरह परिणाम देगी। एक में दैवीय शक्तियाँ प्रगट होंगी और दूसरे में आसुरी प्रवृत्तियाँ जगेंगी।
___अरिहन्तों को नमस्कार यानी जिसने अपने भीतर के शत्रुओं (अरि) का हनन किया है। शत्रुओं का हनन तो महावीर और सिकन्दर, चंगेज खां, तैमूर लंग, नेपोलियन सभी ने किया, मगर हनन करने में फ़र्क है। इन्होंने बाहरी शत्रुओं का हनन किया मगर महावीर ने भीतर के शत्रुओं को पराजित किया।
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