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________________ जाओ। जीवन में स्वस्थ रहने के ये तीन मन्त्र हैं। कम खाओ - आवश्यकता अधिक खाने वाले अस्वस्थ रहते हैं । कम खाने से प्रमाद नहीं आता, अधिक खाने से आलस्य आता है । गम खाओ - थोड़ा धीरज रखो और नम जाओ । बगैर नमे कोई काम भी न बनेगा। जे नमे सो सहुने गमे - जो नमता है वह सभी को प्रिय लगता है । जो नम जाता है वह सबके दिल के करीब हो जाता है । महावीर नम गये तो मंदिरों में प्रतिष्ठित हो गए । जो अकड़कर रह गया वह चौराहों का चबूतरा बन गया । हिन्दुस्तान में आज तक कोई भी राजनेता पूजा नहीं गया लेकिन गांधीजी आज भी पूजे जा रहे हैं । कारण ? गांधी नम गए । विनयवान पूजा जाता है, वही कद्र पाता है । विनयशील की भगवान् की तरह इज़्ज़त होती है। अकड़बाज भी अगर विनम्रता का ग्रीस लगा ले तो जीवन की गाड़ी आराम से चलती है। - - कहते हैं युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया। उसमें युधिष्ठिर ने सभी को योग्यतानुसार कार्यों का वितरण कर दिया, पर कृष्ण को कोई कार्य नहीं दिया । कृष्ण युधिष्ठिर के पास गए और कहने लगे - राजन्, आपने सबको कोई-न-कोई कार्य सौंप दिया है, पर मुझे अभी तक कोई कार्य नहीं सौंपा है। युधिष्ठिर ने कृष्ण से कहा प्रभु आप भी कैसा विनोद करते हैं। आप तो हमारे आदरणीय हैं। हम आपको क्या काम सौंप सकते हैं ? भगवान ने जो ज़वाब दिया वह अनुकरणीय है । उन्होंने कहा आदरणीय हूँ, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं अयोग्य हूँ। यह सुनते ही युधिष्ठिर सकपका गए, बोले प्रभु आप यह क्या कह रहे हैं ? अगर ऐसी बात है तो जो काम आपको पसंद आए, आप उसका चयन कर लीजिए। कृष्ण ने जिस काम का चयन किया वह भारत का हर व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले तो हमारे यहाँ से गंदगी का नामोनिशान मिट जाए। जो भी इसे अपने जीवन में अपना लेगा वह धन्य हो जाएगा वह कृष्ण प्रिय हो जाएगा। तब कृष्ण ने उस महायज्ञ में आने वाले सभी अतिथियों के पद - प्रक्षालन और भोजन करने के बाद जूठी पत्तलें उठाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। - ३६ Jain Education International यह घटना हमें सिखाती है कि दुनिया में कोई भी काम छोटा नहीं होता । जो जाता है उसे वैसे भी कोई काम छोटा नज़र नहीं आता। जो नमता है वह सभी को प्रिय होता है। सास भी अगर नमेगी तो बहू को प्रिय लगेगी और बहू भी - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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