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________________ को तैयार हो जाएँ। प्रभु तो हमें अपनी दौलत देने को तैयार हैं बशर्ते हम अपनी थोड़ी-सी दौलत उन्हें लुटा दें। प्रभु हमारी दरिद्रता हरने को तैयार हैं बशर्ते हम दरिद्रों की दरिद्रता दूर कर दें । प्रभु हमें रास्ता दिखाने को तैयार हैं, बस हम पहले पथहारों को रास्ता दिखा दें। दस कदम उसकी ओर बढ़कर तो देखें वह सौ कदम बढ़कर हमारी ओर आ जाएगा। उसके लिए चार आँसू बहाकर तो देखें वह हमें अपनी आँखों के गंगाजल से अभिषिक्त कर देगा । उसका अनुग्रह अनूठा है, असीम है। उसकी कृपा अपार है। जो घूँट - घूँट पीता है वही जानता है उसकी कृपा कितनी है । जो दिल के देवालय में उसका ध्यान धरता है वही जानता है कि उसकी कृपा कितनी अनूठी है । जो आँखों में उसके दिव्य स्वरूप को बसाता है वही समझता है कि उसका नूर कैसा है। जो उसका नाम लेकर दिन की शुरुआत करता है वही जानता है कि जिह्वा पर उसका स्वाद कैसा है, उसका माधुर्य कैसा है। मैं तो बस महापुरुषों के जीवन से रोशनी लेकर जीवन का मज़ा लेता हूँ और जो रस पाता हूँ वह आप लोगों के साथ बाँट लेता हूँ । 1 राजकुमार पार्श्वनाथ ने गंगा के किनारे कमठ द्वारा की जा रही पंचाग्नि तपस्या को देखा। वे देखते हैं कि कमठ लकड़ियाँ जलाकर तपस्या कर रहा है। वे वहाँ पहुँचे और ध्यान से देखने पर पाया कि लकड़ियों के बीच में साँप का एक जोड़ा भी जल रहा है। उन्होंने कमठ तपस्वी को ललकारा और कहा कि ऐसा तप किस काम का जिसमें जीवों की हिंसा, हत्या हो रही हो । वे लकड़ियों को निकालते हैं और उसमें जलते हुए सर्प और सर्पिणी दिखाते हैं । अग्नि में झुलसे हुए सर्प - सर्पिणी को पार्श्वकुमार धर्म-मंत्र सुनाते हैं । यह घटना हमें सिखाती है कि जीवन में हमें भी अगर कोई घायल इन्सान या पशु-पक्षी मिल जाए तो हमें भी उसे धर्म-मंत्र सुनाना चाहिए और उसके उपचार की तुरंत व्यवस्था करनी चाहिए। धर्म-मंत्र को सुनकर उस नाग-युगल का उद्धार हो गया । वे मरकर धरणेंद्र और पद्मावती के रूप में देव बन गए। हम भी किसी घायल की अन्य किसी प्रकार की सेवा न कर पाएँ तो कम-से-कम धर्म - मंत्र तो सुना ही सकते हैं । यह भी बड़ी सेवा होगी, यह जीवदया और विश्वमैत्री को साधने का सूत्र होगा। हम विश्वमित्र बन जाएँ, सबके मित्र । घर, परिवार, बीवी-बच्चे, रिश्तेदार, समाज सबके मित्र बन जाएँ । धर्म हमें विश्व - मित्र बनने का संदेश Jain Education International For Personal & Private Use Only २७. www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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