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देता है। प्राणी मात्र से मैत्री, सबकी सेवा, सबसे प्रेम । पार्श्वकुमार का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि अज्ञान - तप कभी मत करना । तप भी ज्ञानपूर्वक करें ताकि वह आत्मशुद्धि ला सके, मन के विकार क्षय हो जाएँ, मन के विकारों की गाँठें खुल जाएँ । शरीर को तपाना तो एक आधार है । तपाने का उद्देश्य तो मक्खन को तपाने जैसा है। मक्खन से घी बनाने के लिए तपेले को तपाना पड़ता है | काया भी तपेले की तरह है लेकिन इसे तपाना हमारा उद्देश्य नहीं है। हमें साधना मार्ग से अन्तिम लक्ष्य-मुक्ति को पाना है। मक्खन से घी की तरह ।
मेरा मत है कि भारतवासियों को सप्ताह में एक दिन व्रत अवश्य करना चाहिए क्योंकि प्रायः सभी मोटापे के शिकार हो रहे हैं। शरीर की ताकत कम और फुलाव अधिक हो गया है। अतिरिक्त, एक्सट्रा चर्बी अच्छी नहीं लगती । अज्ञान-तप हटाओ, ज्ञानमूलक तप जोड़ो। सप्ताह में एक दिन व्रत करने पर एक समय खाना खाएँगे तब कुछ समय शरीर से हटकर आत्म-ज्ञान की ओर मन जाएगा। ‘स्वस्थ इन्सान, स्वस्थ संसार' यह हमारा नारा हो जाना चाहिए । इन्सान के स्वस्थ रहने पर ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। इसलिए ज़रूरी है कि भोजन की आवश्यकता कम की जाए। घर से ही प्रारम्भ हो । घर को तपोवन बनाएँ और जीवन को तपस्या ।
पार्श्वनाथ तपस्या में रत थे तब मेघमाली ने उन पर बर्फ़ की शिलाएँ गिराईं, उनकी तपस्या में नाना प्रकार से विघ्न डालने की कोशिश की, लेकिन वे अविचल रहे और सारी विषमताओं को सहन करते हुए समता की प्रतिमूर्ति बन गए। जब प्रभु पार्श्वनाथ बर्फ़ की शिलाओं को सहन कर गए तो हम किसी की ग़ालियों को, अपशब्दों को तो सहन कर ही सकते हैं। जीसस कहते हैं - कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो तुम दूसरा गाल भी उसके सामने कर दो । यह दया और प्रेम की पराकाष्ठा है। दुनिया में ऐसा कोई करता नहीं है। हाँ, यदि कोई ऐसा करता है तो निश्चित ही वह ईसा मसीह का अमृत पुत्र है ।
महावीर जैसे बेशकीमती फूल धरती पर कभी-कभी ही खिलते हैं। ऐसा लगता है कि दुनिया के बगीचे में खिला यह अद्भुत, अनूठा स्वर्ण-कमल है। उनका नाम लेने मात्र से जिह्वा पर मिठास आ जाती है। जिनका ध्यान करने मात्र से दिल का स्वरूप दैवीय हो जाता है, जिनका दर्शन करने के लिए मन तृषातुर
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