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________________ आपस में झगड़ पड़े तो उन्होंने बाहुबली के लिए भी संन्यास का मार्ग प्रशस्त कर दिया। बाहुबली ने अपने बड़े भाई को युद्ध में पराजित करने की बज़ाय, अपनी उठी हुई मुट्ठी से भाई पर प्रहार करने की बजाय अपने सिर के बालों का लुंचन कर लेना बेहतर समझा और बाहुबली श्रमण बन गए। आज भी श्रवणबेलगोला में उनकी विशालकाय आदर्श प्रतिमा विद्यमान है भव्य, सुन्दर और नयनाभिराम । आज भी लगता है जैसे नव्य हो । ऋषभदेव के जीवन से हमें कर्म करने की प्रेरणा मिलती है, साथ-ही-साथ वैराग्य की भी प्रेरणा मिलती है। ऋषभदेव खुद मुक्त हों उससे पहले अपनी माँ मरुदेवी के लिए मोक्ष के द्वार खुलवा दिए । यही तो विशेषता है कि बेटा स्वयं का उद्धार करे उससे पहले अपने माता-पिता की मुक्ति की व्यवस्था कर दे तो उसका संतान होना सार्थक हो जाता है। संतान का जन्म इसीलिए होता है ताकि माता-पिता की गति सद्गति हो सके। नेमिनाथ ऐसे महापुरुष हुए जिन्होंने जीवदया से प्रेरित होकर प्राणी-मित्र और विश्वमित्र की भूमिका निभाई और न केवल पीड़ित जनता वरन् पशु-पक्षियों की पीड़ा को दूर करने के लिए उन्होंने सारे संसार को करुणा का पैग़ाम दिया। नेमिनाथ महाकरुणावतार हैं। राजाओं का जमाना था अतः वैवाहिक व अन्य अवसरों पर बलि दी जाती थी। पशु-पक्षियों का वध किया जाता और मांसाहार करवाया जाता। लेकिन नेमिनाथ ने कहा - मैं ऐसा विवाह नहीं करना चाहता जिसमें किसी एक व्यक्ति के आनन्द के लिए किसी एक व्यक्ति के राज-वैभव को दिखाने के लिए हज़ारों-हज़ार पशुओं की बलि दी जाए । हज़ारों-हज़ार पशुओं के वध की बजाय मैं अपने विवाह की बलि देता हूँ और तब वे विवाह करने की बजाय वापस लौट गए। और निकल गए गिरनार पर्वत की ओर जहाँ उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया। तब नेमिनाथ की होने वाली अविवाहिता पत्नी राजुल उनके पास जाकर कहती है - प्रभु आपने मुझे अपनी पत्नी तो नहीं बनाया पर आप मुझे अपने चरणों की दासी बना लीजिए, दीक्षा देकर मुझे धन्य कर दीजिए। तब राजुल ने कहा - सौभाग्य कहाँ सहगमन करूँ, अनुगमन करूँ ऐसा वर दो। जो हाथ, हाथ में नहीं दिया, वह हाथ शीष पर तो धर दो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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