SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्व का कल्याण कर सकता है। अग्रवालों के प्रथम गुरु अग्रसेन, महाराज ही थे, संत नहीं बने थे। फिर भी वे महापुरुष हो गए। अग्रसेन ने राजा होकर भी समाज को संगठित किया। लोगों को अहिंसात्मक तरीके से जीना सिखाया। भाई-भाई के काम आ सके इसका तजुर्बा दिया। इसीलिए आज भी अग्रवाल बंधु सारे संसार में छाए हुए हैं। जो सिखाए वह टीचर लेकिन जो आध्यात्मिक शिक्षा दे वह गुरु, मास्टर । टीचर और गुरु में फ़र्क है। टीचर सांसारिक जीवन चलाने की सीख देता है और गुरु आध्यात्मिक जीवन की पर्ते खोलता है। इस दृष्टि से ऋषभदेव, कृष्ण, नानक, अरविन्द सभी गुरु हुए । ऋषभदेव राजा थे, पर उन्होंने जनता को दोनों तरह की शिक्षाएँ दीं। उन्होंने सिखाया कि कैसे लिखा जाए, कैसे खेती की जाए, कैसे शस्त्र और हथियार चलाए जाएँ तथा कैसे अपनी रक्षा की जाए। इसलिए ऋषभदेव पहले टीचर हुए जिन्होंने राजा होकर भी दुनिया को सिखाया और संन्यस्त होने के बाद अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त किया। __ भारतवर्ष के महान सम्राट अशोक ने दुनिया को अहिंसात्मक तरीके से राज्य करना सिखाया। महावीर ने संत होकर दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया । बुद्ध ने श्रमण बनकर करुणा का पाठ सिखाया लेकिन अशोक ने तो राजा होकर अहिंसात्मक तरीके से राज्य का संचालन करना सिखाया। गांधी ने अहिंसात्मक तरीके से देश की स्वतंत्रता हासिल करना सिखाया। दुनिया के इतिहास में ऐसे पन्ने किस्मत से ही लिखे जाते हैं कि देश को अहिंसात्मक तरीके से आज़ाद करवाया जा सकता है। उन्होंने अहिंसा और अपरिग्रह को अपने जीवन के साथ जोड़ लिया था। आज जहाँ राजनेता अपनी जेबें भर रहे हैं वहाँ गाँधी ने ऐसी गाँधीगिरी की टोपी चला डाली कि लोग उस टोपी को सिर पर पहनना भी अपना सम्मान समझते हैं। यह महापुरुषों का जीवन है। ऋषभदेव ने राजा बनकर तो दुनिया को असि, मसि, कृषि की शिक्षा दी ही, लेकिन जब वे श्रमण, वैरागी, जोगी बन गए तो अनुत्तर योग का पाठ पढ़ाया। जंगलों में जाकर जपे-तपे और ऐसे तपे कि न केवल वे स्वयं श्रमण और भिक्षु बने, बल्कि अपने अट्ठानवें पुत्रों को भी संन्यास का मार्ग दे दिया। इतना ही नहीं उनके दो पुत्र भरत और बाहुबली चक्रवर्ती बनने की ललक में २४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy