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त्याग, तपस्या, प्रबल सहनशीलता को याद करके मन अपने आप ही कहने लगता है :
क्या कहूँ कि मैं क्या हुआ आज, कृतकृत्य कहूँ, चिर धन्य कहूँ। जब तुम आए मम हृदयराज,
तब निज को क्यों न अनन्य कहूँ।। हे महापुरुषो ! तुम्हें जब याद करता हूँ तो तुम्हें कैसे बताऊँ कि तुम्हें याद करने से हमारे भीतर क्या हो रहा है ? तुम्हें याद करने से दिल देवालय बन रहा है। तुम्हें याद करने से आँखें छलक आती हैं, जिह्वा मिठास से भर जाती है। तुम्हें याद करने से मन, मन नहीं रहता मंदिर बन जाता है। इसीलिए साधारण बातें भी असाधारण परिणाम दे जाती हैं। जो बातें इतिहास हो गई हैं वे ही बातें हमारे लिए चमत्कार कर सकती हैं, हमें बदल सकती हैं, हमारा रूपान्तरण कर सकती हैं।
हर बरगद कभी-न-कभी बीज ही होता है। हर विद्वान तुतलाती भाषा बोलने वाला बच्चा ही होता है कभी। बात बदलने की है, अगर बदल गए तो रंग निखरकर आ गया । न बदले तो कीड़ा सदा कीचड़ में ही समाया रहा। जो धंस गया वह कीड़ा बन गया, जो निकल आया वह कमल हो गया। महावीर हमें मुक्ति का कमल थमाते हैं, उनका जीवन ही हमारे लिए मुक्ति का कमल है। महावीर की परम्परा में उनसे पहले पार्श्वनाथ हुए। पार्श्वनाथ से पहले नेमिनाथ और नेमिनाथ से पहले इक्कीस तीर्थंकर और हुए। उनमें ऋषभदेव सर्वप्रथम हैं। यह एक लम्बी श्रृंखला है। जैसे दीप से दीप जलते हैं और आपस में जुड़े होते हैं, कंधे से कंधे मिले होते हैं ऐसे ही महापुरुषों से महापुरुष मोतियों की माला की तरह गुंथे होते हैं। महापुरुषों के नाम की माला फेरने की भूल न कर बैठना, न ही गले में पहन लेना। महापुरुष गले में धारण करने की चीज़ नहीं हैं, दिल में धारण की चीज़ हैं। ऋषभदेव को हुए अनगिनत वर्ष हो गए। वे एक राजकुमार थे, राजा भी बने। मगर दूसरे राजाओं की तरह युद्ध करके राज्यविस्तार नहीं किया। उन्होंने तो दुनिया को जीना सिखाया।
ज़रूरी नहीं है कि व्यक्ति महात्मा या संत ही बने । वह राजा होकर भी
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