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________________ निर्लिप्त रहो। यह कितनी बड़ी बात है कि हज़ारों गोपिकाओं से घिरा हुआ व्यक्ति भी अनासक्त ! यही तो है वास्तविक साधना-दृष्टि, अन्तर्दृष्टि, आत्मदृष्टि, प्रभु-दृष्टि कि सबके बीच में हैं पर किसी के भी साथ नहीं। हाँ, अगर राजी करना हो तो हज़ारों गोपिकाओं के साथ हजारों रूप में उपस्थित हैं । जीवन एक उत्सव है और कृष्ण के जीवन से यही उत्सवप्रियता सीखने को मिलती है। अगर भारत के धर्म में से कृष्ण को हटा दिया जाए तो यहाँ के सारे धर्म सूखे हो जाएँगे और सभी धर्मों में कृष्ण को जोड़ दें तो हर धर्म हँसता हुआ धर्म हो जाएगा। प्यार से मुस्कुराता हुआ, बाँसुरी की तरह सरसाता धर्म हो जाएगा। मैं कृष्ण की तरह बाँसुरी बजाना तो नहीं जानता, पर उस मुरलीधर को याद करके अपने जीवन को संगीतमय बनाने का प्रयास सदा बनाए रखता हूँ । जीसस ने मुझे सिखाया है कि यदि कोई व्यक्ति तुम्हारे प्रति ग़लत आचरण कर रहा है, अत्याचार कर रहा है, तुम्हें सलीब पर भी चढ़ा रहा है तब भी तुम अपने भीतर दया, प्रेम, करुणा और क्षमा की भावना को इतना जीवन्त कर लो कि तुम, तुम न रहो जीसस बन जाओ। जिस दिन व्यक्ति वह नहीं रहता जो वह है और जीसस बन जाता है, तब वह जीसस भी नहीं रहता, तब वह ईश्वर बन जाता है । मेरे हृदय में जीसस के प्रति सम्मान है । उनकी प्रेरणाएँ मेरे जीवन का लक्ष्य हैं। महावीर मेरे लिए वंदनीय हैं। कुल और जाति की दृष्टि से मेरा महावीर से कोई सम्बन्ध नहीं है लेकिन महावीर की निर्भयता, सहनशीलता, ध्यान-निष्ठा, उनकी प्रबल समाधि हमें उनकी ओर प्रबलता से आकर्षित करती हैं । व्यक्ति से हमें क्या मोह, उनसे हमें क्या लेना-देना । हमने उन्हें देखा या जाना तो नहीं है फिर उनसे कैसा मोह ? वह तो इतिहास की तारीख़ों के हस्ताक्षर बन गये । प्रत्यक्ष रूप से उन्होंने हमारा जीवन भी नहीं बनाया लेकिन फिर भी उनसे प्रेम है, उनका सम्मान है और आदर है क्योंकि उनका जीवन हमें शिक्षा देता है, स्वयं के जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। उनका जीवन हमारे लिए मील के पत्थर का काम करता है, प्राची में उगने वाले सूरज का काम करता है, आशा का सवेरा जगाता है। जो महापुरुषों के जीवन से प्यार करते हैं वे धन्य हो जाते हैं। उनका २२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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