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________________ खौलता शीशा डाला गया तो स्वाभाविक है कि उसके मन में भी अत्यधिक क्रोध पैदा हुआ होगा, पर अंगरक्षक था कुछ बोल न पाया और मर गया। लेकिन अंतिम समय में जो दुर्भाव मन में रह गया उसके कारण वही अंगरक्षक आगे किसी जन्म में ग्वाला बनता है और महावीर के कान में कीलें ठोकता है। ये कील ठोकना, कानों में डाले गए पिघले शीशे का भुगतान था। अर्थात् अंतिम समय में जो संकल्प रहे होंगे, जो भाव रहेंगे अगले जन्म में भी वे सब हुआ करेंगे। एक कहावत है- सेठ जी मृत्यु शैय्या पर थे, उनके तीन बेटे थे। आँखें अब बंद हों तब बंद हों की स्थिति में थीं तभी उन्होंने पूछा- बड़ा बेटा कहाँ है? उत्तर मिला- आपके सिरहाने खड़ा है। फिर पूछा- छुटका कहाँ है? बताया गया कि आपके पाँवों की ओर खड़ा है। फिर पूछा- मँझला कहाँ है? उत्तर मिला- मैं आपके पास ही बैठा हूँ। मोहासक्त सेठ कहता है- अगर तीनों ही यहाँ हैं तो दुकान कौन चला रहा है? बताइये इस स्थिति में अगर उसकी मृत्यु हो जाती है तो उसकी क्या गति होगी, क्या स्थिति होगी? जब किसी व्यक्ति को यह अन्तर्बोध घटित हो जाता है तब उसकी चेतना बदलती है। ऐसा कोई-सा ही प्राणी होता है जिसमें बदलाव आता है, उसके भीतर अनासक्ति का कमल खिलता है। तब उसकी मृत्यु तो अवश्य होती है लेकिन वह ज्ञानी की, पंडित मरण की स्थिति हो जाती है। __ मरते समय क्या मति, क्या स्थिति रहेगी, इसकी भविष्यवाणी तो नहीं की जा सकती लेकिन यह भावना अवश्य रहे कि श्री प्रभु जब भी यह नश्वर शरीर छूटे, तब हमारा इस नश्वर संसार के प्रति मोह न हो, घर-परिवार, पत्नी-बच्चे, रिश्तेदारों के प्रति व्यामोह न हो और अपने हिस्से का धन दीन-दुःखी अनाथों के लिए लगा दिया जाए। मैंने स्वामी रामसुखदास जी महाराज की वसीयत पढ़ी है। वे त्यागी तपस्वी संत थे। मरने से पहले अपनी वसीयत में उन्होंने लिखवाया था- मेरे मरने के बाद न तो मेरी अर्थी सजाई जाए, न ही विज्ञापन दिया जाए, न मेरे नाम से कोई जलसा किया जाए बल्कि मेरे शव को मेरे पहने हुए कपड़ों में बाँध लिया जाए Jain Education International For Personal & Private Use Only ३२५ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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