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________________ अपनी आत्मा का निस्तार करूँगा। स्वयं को शुद्ध करूँगा अन्यथा यह तो जन्म-जन्मांतर यूँ ही चलता रहेगा। यह भव-भ्रमण यूँ ही चलता रहेगा। ___कहा जाता है कि नचिकेता के पिता उद्दालक ने विश्वजित यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ का नियम था कि यज्ञ करने के बाद जो श्रेष्ठ चीजें होती हैं उनको दान किया जाता है। तब उद्दालक ने श्रेष्ठ गायों का दान करने के बजाय मरियल, जो दूध नहीं देती थीं उन गायों को दान में दिया। मुफ़्त में मिलने वाली चीज़ों का कोई प्रतिकार नहीं करता इसलिए जैसा भी है मिल तो रहा है, अभी दूध नहीं दे रहीं तो क्या छः महीने बाद तो देंगी। मुफ़्त का दान सब ले चले लेकिन पुत्र को यह बात अच्छी नहीं लगी कि उसके पिता ने इतना महान यज्ञ किया और ऐसे दान से तो उनकी कीर्ति धुंधली हो जाएगी। मेरे पिता को श्रेष्ठ चीज़ दान देनी चाहिए। वह पिताजी के पास जाकर बोला - पिताजी, आप कमज़ोर गायों का दान क्यों कर रहे हैं, श्रेष्ठ गौदान कीजिए । पिताजी ध्यान नहीं देते। वे सोचते हैं श्रेष्ठ गौओं को तो अपने बेटे के लिए रख लूँ। उस समय तो गौ-धन, गज-धन ही धन होता था। बेटे ने फिर ब्राह्मणों के सामने कहा - पिताश्री ! श्रेष्ठ, गौओं का दान कीजिए, नहीं तो आपकी कीर्ति धूमिल हो जाएगी, आपका यज्ञ व्यर्थ हो जाएगा। पिताजी ने कहा - तू श्रेष्ठ, श्रेष्ठ की बात कर रहा है, श्रेष्ठ तो तू भी है। नचिकेता ने कहा - तब तो मेरा भी दान किया जाना चाहिए। पिता उद्वेलित हो जाते हैं, श्रेष्ठ गौओं का दान करने लगते हैं क्योंकि पुत्र ने ऋषि-मुनियों के सामने बात कह दी थी। जब श्रेष्ठ गौओं का दान हो गया तो वह भी सामने आकर खड़ा हो गया कि - पिताश्री आपने कहा था कि श्रेष्ठ चीज़ों का दान करना है और तू भी श्रेष्ठ है तो आप मुझे किसको देते हैं। पिताजी को गुस्सा आ गया। वे बोले - जा मैंने तुझे यमराज को दान दिया। कहा जाता है कि नचिकेता वहाँ से निकलकर यमराज के पास पहुँचता है। तीन दिन तक वह पाताललोक के द्वार पर ही खड़ा रहता है। यमराज कहीं बाहर गए हुए थे। जब वह लौटकर आता है तो यमराज की पत्नी यमी बताती है कि - कोई ब्राह्मण बालक तीन दिन तक हमारे द्वार पर भूखा-प्यासा रहा। इससे तुम्हारे पुण्य नष्ट हो जाएँगे, तुम जाओ और उस ब्राह्मण बालक को प्रसन्न करो, संतुष्ट करो। यमराज आए और कहा - तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई, मैं तुमसे प्रसन्न हुआ। तुम Jain Education International २९५ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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