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तीन दिन तक यहाँ भूखे-प्यासे रहे इसलिए मैं तुम्हें तीन वरदान देता हूँ, जो चाहो सो वर में माँग लो।
नचिकेता ने कहा - मैं तो कुछ भी नहीं माँगना चाहता । मैं तो प्रदत्त हूँ, मेरे पिता के द्वारा आपको दान में दिया गया हूँ। मैं आपसे क्या चाह सकता हूँ। तब आपस में चर्चा होती है, यमराज प्रसन्न होकर पुनः तीन वरदान माँगने को कहते हैं, वर माँगो । नचिकेता ने कहा - अगर आप देना ही चाहते हैं तो पहला वर यह दीजिए कि मेरे पिता जो मुझसे नाराज हो गए हैं वे पुनः मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ। यमराज ने कहा - तथास्तु । दूसरा वर क्या माँगना चाहते हो ? नचिकेता ने कहा - नीचे पृथ्वीलोक पर लोग अग्नि की पूजा करते हैं, यज्ञ में जो आहुतियाँ देते हैं उसका रहस्य मुझे समझाएँ । यमराज यज्ञ में जलने वाली अग्नि का रहस्य समझाते हैं और उसमें डाली गई आहुतियाँ किस तरह देवलोक तक या इष्ट देवता तक पहुँचती हैं इसका रहस्य समझाते हैं। और तीसरा वर माँगने को कहते हैं। तब नचिकेता तीसरा वर माँगते हैं कि दुनिया में सारे लोग आत्म-तत्त्व की साधना में लगे रहते हैं। मैं चाहता हूँ कि जिस तत्त्व को ऋषि-मुनि गुफाओं में बैठकर, एकान्त मौन ध्यानपूर्वक जिसे साधने का प्रयत्न करते हैं, प्रबल पुरुषार्थ करते हैं फिर भी वह तत्त्व उन्हें नहीं मिल पाता, मैं चाहता हूँ आप उस आत्मतत्त्व का रहस्य और मर्म मुझे समझाएँ।
यमराज भी हिल जाते हैं क्योंकि दुनिया में आत्म-तत्त्व का प्रथम ज्ञान ही यमराज को है, यमदूतों को है क्योंकि हमारे शरीर के प्राण-तत्त्व को वे ही खींचकर ले जाते हैं। वे ही जानते हैं कि आत्म-तत्त्व को कैसे निकाला जाता है, कैसे मुक्त किया जाता है और कैसे पुनः नया जन्म दिया जाता है। इस तरह नचिकेता ने तीसरे वरदान के रूप में आत्म-तत्त्व का रहस्य जानना चाहा । हालाँकि यमराज ने कई तरह से प्रलोभन दिए कि यह प्रश्न छोड़ दे अगर तू कहे तो राजकुमारियों से विवाह करने का अधिकार दे देता हूँ, तू चाहे तो तुझे तीन लोकों का राजा बना देता हूँ, तू जो चाहे वह सब कुछ करने को तैयार हूँ पर इस प्रश्न को छोड़ दे।
लेकिन नचिकेता अडिग रहता है वह किसी भी प्रलोभन में नहीं आता। यमराज समझ जाते हैं कि यह वह पात्र है जिसे आत्म-ज्ञान का रहस्य देना
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