________________
सच्चाई यह भी है कि मेरे संन्यास पर भी उनका प्रभाव रहा। मेरे भीतर वैराग्य की जो थोड़ी बहुत तरंग आई वह उस साध्वी के कारण ही आई।
वे बोथराजी थे, उन्होंने मौन धारण कर लिया। सुबह हुई, नौ बजे लोग उन्हें लेने आए। उस व्यक्ति ने पुनः उस दिन का पौषध - व्रत धारण कर लिया । पहले दिन का उपवास था दूसरे दिन का भी उन्होंने व्रत धारण कर लिया और मौन ले लिया। घर के लोग आ-आकर समझा रहे हैं, पर वे तो मौन हैं। काग़ज़ पर लिखकर रख दिया, ‘आज पुनः मेरे पौषध व्रत है।' मैंने देखा उस व्यक्ति ने न केवल पौषध व्रत लिया अपितु तीन दिन उपवास किए और तीनों दिन पौषधव्रत किया। वे वहीं धर्म-स्थान पर रुके रहे, घर नहीं गए। - यह सब कैसे हो पाया ? अगर शरीर-भाव होता तो बार-बार यह ख़याल कचोटता कि मेरा पोता, मेरा पोता ... । आत्म-भाव प्रगाढ़ था तो पोता पोता नज़र न आया, नज़र आया शरीर शांत हो गया । इसलिए नरसैया ने गाया है -
पुत्र मयूं भांगी जंजाल, वे भजी श्रीगोपाल ।
जब बच्चा छोटा था तभी नरसैया की पत्नी मर गई, पुत्र को पालने - पोसने की जिम्मेदारी आ गई, लेकिन एक दिन ऐसा आया कि पुत्र भी चल बसा। वे तो श्मशान में ही नाचने लगे कि पुत्र मरयूं भांगी जंजाल । जिसके पीछे घर-गृहस्थी में बँधा हुआ था, भगवान ने उसे भी उठा लिया अब मैं सब तरफ से दायित्व - - मुक्त हो गया । अब तो मैं भगवान जी का भजन निश्चिंत होकर करूँगा और उन्हीं में रम जाऊँगा । - ये सब बातें तभी हो पाती हैं जब आत्मभाव प्रगाढ़ होगा। अगर कोई भक्ति के मार्ग पर चल रहा है तो भगवद्-भाव प्रगाढ़ होगा और वह इन सारे संबंधों को ठुकरा कर चला जाएगा।
आज अगर कोई संत बनता है तो किस कारण ? क्या उसके माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी-बच्चे, जमीन-जायदाद नहीं होतीं ? ग़रीब से ग़रीब व्यक्ति भी अगर संन्यास लेगा तब भी उसके पास कुछ न कुछ तो ज़रूर होगा, खाने की व्यवस्था तो होगी ही । लोगों को आत्महत्या करना याद रहता है पर संन्यास लेना याद नहीं आता । तो वही व्यक्ति संन्यास ले पाता है जिसके भीतर आत्म-भाव प्रगाढ़ हो गया कि अब मैं स्वयं का, आत्मा का कल्याण करूँगा,
२९४
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org