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________________ आत्माका रहस्य-बोध ज्ञानियों ने जिसे आत्मा कहा है आज हम उस पर चर्चा करेंगे। कहने को तो आत्मा केवल एक शब्द है। पर यह वह तत्त्व है जिसके होने पर जीवन है और जिसके विलग हो जाने पर हमारा शरीर निष्प्राण निष्क्रिय हो जाता है। आत्मा को अगर समझना हो तो सीधा-सा उदाहरण यह है कि जब भी मौका मिले हम श्मशान में जाएँ, वहाँ अर्थी पर सजी हुई लाश को देखें और स्वयं से उसकी तुलना करें। तब हमें लगेगा कि हमारा और उस लाश का शरीर एक जैसा है। पाँचों इन्द्रियाँ भी उस शरीर में हैं। पूरा शरीर और उसकी संरचना हू-ब-हू सामने रहती है, लेकिन एक चीज़ उससे अलग हो जाने के कारण वह लाश बन गई है। यही वह चीज़ है जिसे हम चेतना, आत्मा या प्राण कहते हैं। शब्दों का फ़र्क हो सकता है लेकिन वही ऐसा तत्त्व है, जो हमारे जीवन को संचालित करता है। महावीर तो विशुद्ध रूप से आत्मवादी तीर्थंकर हैं। उनके सिद्धान्तों के सारे पंछी आत्मा के आकाश में ही उड़ते हैं। महावीर की साधना का पहला कदम और अंतिम चरण आत्म-तत्त्व ही है। स्वयं को जानना, स्वयं को जीना, स्वयं में उतरना, यही अलग-अलग भाषा में कभी आत्मज्ञान, कभी २७८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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