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________________ आ जाओ। उसने कहा - जो कहना है नीचे से ही कह दो। भिखारी ने कहा - साहब बात बहुत गंभीर है, नीचे से नहीं कह सकता । गड़बड़ी होने की आशंका है। वह व्यक्ति उतरकर नीचे गया और कहा - बोलो भाई क्या काम है। उसने कहा - साहब मैं बहुत भूखा हूँ, कुछ खाने को मिल जाए तो अच्छा रहे। उस व्यक्ति ने कहा - भाई, यह बात तो तुम नीचे से भी कह सकते थे, इसके लिए मुझे ऊपर से नीचे बुलाने की क्या ज़रूरत थी। भिखारी ने कहा - साहब गड़बड़ थी, कहीं आपने इन्कार कर दिया तो ! मैं नहीं चाहता था कि आपका पड़ोसी सुन ले। आपकी इमेज़ का सवाल है, लोग क्या कहेंगे, एक भिखारी भीख माँगने आया है और आप दो रोटी भी न दे सके । मुझे लगा कि आप मना कर देंगे इसीलिए नीचे बुला लिया। उस व्यक्ति ने कुछ सोचा और कहा - अच्छा ठीक है, चलो मेरे साथ ऊपर आ जाओ। भिखारी खुश हुआ कि दो रोटी मिल जाएँगी। भिखारी बूढ़ा और मोटा था । बमुश्किल सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर पहुँचा। वह व्यक्ति तो पुनः अपना छप्पर ठीक करने में लग गया। आधा घंटे तक तो ध्यान भी न दिया । तब भिखारी बोला - साहब मुझे आधा घंटा हो गया बैठे हुए। वह व्यक्ति बोला - हाँ, बोलो क्या काम है ? भिखारी ने कहा - आप ही ने तो मुझे ऊपर बुलाया है। उन्होंने कहा – ठीक है वापस चले जाओ। भिखारी बोला - आपने बुलाया था। वे बोले - न, न, न.. मैंने यह सोचकर ऊपर बुलाया कि अगर वहीं ना कर देता तो तुम्हारी इज़्ज़त कम हो जाती इसलिए सोचा कि ऊपर बुलाकर ना कह दूँ। भिखारी बोला - ओफ्फो ! जब ना ही कहना था तो नीचे ही कर देते । उसने कहा - ग़ज़ब की बात है। तू भिखारी होकर मुझे नीचे बुला सकता है, तो क्या मैं मालिक होकर तुझे ऊपर नहीं बुला सकता ? दुनिया में इस तरह की बातें चलती रहेंगी। हम लोग एक-दूसरे के साथ उठापटक करते रहेंगे। पर महावीर हमें इस उठापटक से, इस मंथन से बाहर निकालना चाहते हैं और वह रास्ता दिखाना चाहते हैं जो मुक्ति की ओर जाता है। महावीर के शब्द हैं - 'जो जीव मिथ्यात्व से ग्रस्त होता है, उसकी दृष्टि विपरीत हो जाती है, उसे धर्म भी रुचिकर नहीं लगता । जैसे ज्वरग्रस्त व्यक्ति को मीठा रस भी अच्छा नहीं लगता। मिथ्यात्वग्रस्त जीव तीव्र कषाय से आविष्ट २६७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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