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________________ 1 योग्यताएँ गुरु को समझ में आ जाती हैं कि यह वह व्यक्ति है जो उनके द्वारा दिए गए विशिष्ट ज्ञान, विशिष्ट विद्याओं को ग्रहण करने का पात्र बन गया है तभी वे अपना रहस्य, सिद्धियों का रहस्य उसे बताते हैं । आज तो यह स्थिति है कि भारत से अनेक विद्याएँ लुप्त हो गईं क्योंकि गुरुओं को ऐसे शिष्य मिल ही न पाए जिन्हें वे अपना ज्ञान हस्तांतरित कर सकते। जब तक मिलते रहे ज्ञान की श्रृंखला आगे से आगे चलती रही। युग बदलते गए, लोग मोह-माया में उलझते रहे और शिष्य गुरु की कसौटी पर खरे नहीं उतर सके और विद्याएँ गुरुओं के साथ ही विलुप्त हो गईं। गुरुजनों का दिल जीतने के लिए ज़रूरी है कि हम उनकी आज्ञाओं को शिरोधार्य करें । गुरुजी ने कह दिया कि कौआ सफेद तो सफेद। अगर समझ में न आए तो एकांत में पूछें कि गुरुजी कौआ तो काला होता है पर आपने सफेद कहा, मैं इसका रहस्य समझ नहीं पाया। हमें प्रश्न करने का, तर्क करने का अधिकार तो है, पर तुरंत नहीं । सास बहू को कुछ कहती है तो बहू का कर्तव्य है कि वह सास की बात को शिरोधार्य करे । पति पत्नी से कुछ कहता है तो पत्नी को चाहिए कि वह पति की बात माने । जब सिन्दूर को शिरोधार्य किया जा रहा है तो प्रश्न नहीं उठता कि बात मानें या न मानें। जब गुरु को हमने अपना जीवन ही दे दिया है तब वहाँ प्रश्न कहाँ से उठेगा। जीवन देने के बाद यदि आप प्रश्न उठा रहे हैं तो इसका मतलब है आप अपने समर्पण पर प्रश्न उठा रहे हैं। अगर कोई देश की आजादी के लिए लड़ रहा है तो उसे पहले ही सोच लेना चाहिए कि फाँसी भी लग सकती है और कारागार में भी रहना पड़ सकता है । जब चल पड़े तो चाहे जो परिणाम आए स्वीकार करना है। हम अपने गुरु की आज्ञाओं को पालन करने की जागरूकता रखें, सचेतनता रखें। चौथा आवश्यक कर्त्तव्य है - प्रतिक्रमण । प्रतिक्रमण शब्द का अर्थ है 1 जहाँ-जहाँ हमारी ओर से अतिक्रमण हुआ है वहाँ-वहाँ से अपने चित्त को, अपनी चेतना को, अपने मन को वापस लौटाकर ले आना । तीन शब्द हैं आक्रमण, अतिक्रमण और प्रतिक्रमण । आक्रमण है किसी पर हमला बोलना, अतिक्रमण होता है किसी पर कब्जा कर लेना और प्रतिक्रमण होता है वापस Jain Education International For Personal & Private Use Only - २५७ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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