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________________ अपने आप में लौट आना। धर्म ने एक व्यवस्था दी है कि सुबह और शाम प्रतिक्रमण करें क्योंकि हमारा मन दिन भर किए गए कार्यों का, पापों का मूल्यांकन नहीं कर पाता, चिंतन और चितवन नहीं कर पाता, मनन और विचार नहीं कर पाता, दैनंदिनी जीवन का मूल्यांकन नहीं कर पाता, इसलिए ज्ञानीजनों ने धर्मानुरागी लोगों के लिए विशिष्ट पाठ बना दिया कि अगर तुम्हारा मन ध्यान में नहीं लगता तो कम से कम इन पाठों को ही बोल लो। लेकिन ख़याल रहे कि प्रतिक्रमण के पाठों को बोलना मुख्य उद्देश्य नहीं है उद्देश्य तो प्रभु की प्रार्थना करते हुए दिन भर में जाने-अनजाने में अपने द्वारा हो चुके दोषों की आलोचना, गर्दा करना है। आप उन दोषों के लिए क्षमा-प्रार्थना करें। प्रभु से अपने कृत्यों के लिए क्षमा माँगें कि दिन भर में या रात भर में किसी प्रकार का गलत चिंतन हो गया हो, किसी के प्रति गलत वाणी का प्रयोग हो गया हो या हमारे शरीर के द्वारा गलत कार्य या गलत व्यवहार हो गया हो तो प्रभु मन-वचन-काया से क्षमा माँगते हैं, क्षमा-प्रार्थना करते हैं। यह प्रतिक्रमण है। आत्म-भाव में उतरकर पूर्ण भावों से मन से प्रायश्चित्त करें। हाँ, अगर जान-बूझकर कुछ गलत हो गया हो तो निश्चित ही उसके लिए प्रायश्चित्त करें कि यह मुझे नहीं करना चाहिए। यहाँ मैं गलत था, आज मेरे द्वारा क्रोध हो गया मुझे इसका प्रायश्चित्त है और प्रायश्चित्त में क्या करूँ ? तो आने वाले कल में व्रत रखूगा, एकासन करूँगा। प्रतिक्रमण के पाठ हमें धैर्यपूर्वक बोलने चाहिए न कि ज़ल्दबाज़ी में । मेरा व्यक्तिगत मत है कि प्रतिक्रमण के जो दुरूह पाठ हैं उनका सरल स्वरूप होना चाहिए, साथ ही उन्हें कुछ सीमित भी किया जाना चाहिए । इतना अनुरोध ज़रूर है कि प्रतिक्रमण के पाठ धैर्यपूर्वक, मन लगाकर शांति से बोलें, उच्चारण शुद्ध हो, गति कम हो, एक-एक शब्द स्पष्ट बोलें। उन शब्दों का चिंतन करते हुए अपनी आत्मा के साथ, मन से जोड़ते हुए बोलें। मनोयोगपूर्वक प्रतिक्रमण किया जाना चाहिए। जितना भी करें मन लगाकर करें। अधिक समय लगाने से कुछ नहीं होने वाला। चाहे कम करें, पर परफेक्ट करें। अगर शुद्धतापूर्वक किया जाए तो एक छोटा-सा मंत्र भी देवता का आह्वान कर सकता है। अगर शुद्धता हो तो इत्र की चर बूंदें भी दस किलो तेल को खुशबू से भर देती हैं। अगर शुद्ध न हो तो भले ही इत्र में तेल डाला तो पता नहीं चलता है। २५८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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