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________________ अर्थ – सिद्धान्त, चौथा अर्थ - समता और समभाव होता है। इस तरह अपने आपको आत्मा में, समता में, समभाव में, सिद्धान्त में स्थापित करने को सामायिक कहते हैं। सामान्य रूप से व्यक्ति गृहस्थ में जीता है। उसके लिए एक सामायिक वह है जिसे वह दो घड़ी बैठकर करता है और दूसरी सामायिक वह है जिसे हम जीवन भर के लिए स्वीकार करते हैं। संत में और गृहस्थ में बुनियादी रूप से यही फ़र्क है कि सांसारिक प्राणी व्रत लेकर अड़तालीस मिनिट या एक-दो घंटे की सामायिक लेता है और संत जीवन-भर की सामायिक स्वीकार करते हुए स्वयं को समता, शांति और समभाव में स्थापित कर लेता है। इसलिए एक सामायिक आंशिक और दूसरी सार्वकालिक होती है। संत की सामायिक सार्वकालिक होती है। वह जीवन-भर के लिए समत्व-भाव में स्थापित होने का संकल्प लेता है। वह प्रतिज्ञा करता है कि चाहे जैसी स्थिति आ जाए वह अपनी शांति, समता और समभाव को न छोड़ेगा। लेकिन गृहस्थ जिनके लिए सम्पूर्णतः सामायिक व्रत स्वीकार कर पाना संभव नहीं हो पाता वे लोग अड़तालीस मिनिट या एक घंटे तक किसी प्रकार की हिंसा-प्रतिहिंसा नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे, चोरी नहीं करेंगे, किसी के प्रति ग़लत नज़र नहीं डालेंगे, किसी प्रकार के परिग्रह-संग्रह पर ध्यान नहीं देंगे। अर्थात् जैसे बंद कमरे में निष्कंप दीपक जलता है ठीक इसी प्रकार सामायिक में भी व्यक्ति अपने चित्त को निष्कंप करते हुए स्वयं को मन-वचन-काया से समत्व-भाव में स्थित करता है। जो मन-वचन-काया से सामायिक करता है वह घर में रहते हुए भी संत-पुरुष है। वह गृहस्थ-संत है जो मन-वचन-काया तीनों से समत्व-भाव में रहता है। एक सामायिक करना ठीक वैसे ही है जैसे सुबह-सुबह विटामिन का एक कैप्सूल खाना । जैसे हम विटामिन का एक कैप्सूल खाते हैं और उसका प्रभाव पूरे दिन रहता है उसी तरह मन-वचन-काया से की गई एक सामायिक का असर पूरे दिन रहता है। यह ज़रूरी नहीं है कि व्यक्ति चौबीस घंटे ध्यान करे, चौबीस घंटे ध्यान किया भी नहीं जा सकता, लेकिन सुबह-शाम दो घंटे ध्यान कर लेता है तो सुबह किए गए ध्यान का असर दिनभर व साँझ में किए गए ध्यान का असर रातभर रहेगा। अगर पूरे दिन ध्यान का असर न रह पाया तो ध्यान अपूर्ण रहा। विटामिन की गोली खाई और उसका असर न हुआ तो 213 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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