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देखते हैं, हो सकता है कल ही आ जाऊँ । दूसरे दिन वह व्यक्ति जब खाना बना रहा था तो एक कुत्ता आ गया और कहानी बताती है कि उसने लाठी मारकर उसे वहाँ से निकाल दिया ।
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साँई की पीठ पर चोट पड़ी। व्यक्ति दूसरे दिन पहुँचा और कहने लगा - प्रभु, आप तो आए ही नहीं । साँई ने कहा- मैं तो आया था पर तूने ही मुझे भगा दिया । व्यक्ति ने पूछा - पर आप कब आए थे ? कल दोपहर को जब तू रोटी बना रहा था - साँई ने कहा । वह तो कुत्ता था - व्यक्ति ने कहा । तब साँई बोले जब मेरा भक्त कुत्ते में भी, जानवर में भी, भिखारी में भी मुझे देखना शुरू कर देगा, साँई उस दिन से उसके घर में भोजन करना शुरू कर देगा ।
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साँई, स्वामी, ईश्वर, परमेश्वर जब भी आते हैं इन्सान की परीक्षा लेने ही आते हैं, अन्यथा वह तो हमेशा इन्सान के, प्राणी मात्र के साथ ही होते हैं । वे किसी से अलग नहीं हैं क्योंकि वे हम सबके प्राण हैं । जो हमारा प्राण है वह हमसे अलग कैसे हो सकता है ।
ख़ास बात यह है कि हम सभी को अपने जीवन में नियम रखने चाहिए। यम-नियम के बिना योग नहीं सध सकता, न ही धर्म - स्थानों पर जाने का कुछ परिणाम होगा। धर्म-स्थलों की सार्थकता वहाँ जाने की पात्रता हासिल कर लेने पर ही संभव है । देखते ही हैं कि न तो सभी धर्मस्थानों पर जाते हैं और न ही साधु- संतों के पास । इन जगहों पर जाने के लिए पहले पात्रता चाहिए। पात्रता न होने पर इन स्थानों पर जाना निरर्थक है । जब तक जिज्ञासा न होगी, प्यास न होगी तो कुछ हासिल ही न हो सकेगा। बिना प्यास के अगर पानी के पास चले भी गए तो खाली हाथ ही लौटकर आओगे, पानी का मूल्य ही न समझ पाओगे । गुरु के पास जाकर क्या करोगे अगर हमारे भीतर प्यास, उनका ज्ञान - बोध लेने की जिज्ञासा नहीं है ।
भगवान महावीर जीवन के नियमों की तरह ही धर्म के नियम देना चाहते हैं। वे नियम देते हुए छः आवश्यक कर्त्तव्य बताते हैं, जिन्हें अपने जीवन में हमें जीना चाहिए। प्रभु की ओर से दिया गया पहला कर्त्तव्य है - व्यक्ति जीवन में सामायिक की आराधना करे । हम 'सामायिक' को समझें । सामायिक शब्द 'समय' से बना है। समय का एक अर्थ आत्मा, तीसरा
टाइम (काल) है, दूसरा अर्थ
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