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________________ आज भी स्वस्थ, प्रसन्न और उत्साहपूर्ण रहे। आने वाला पल चाहे जीवन का हो या मृत्यु का, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे मन की स्थिति बेहतर रह सके इसीलिए योग और प्राणायाम कर रहा हूँ। जब कोई मृत्यु के समय भी अपने लिये हुए नियम को निभा रहा है तो यह मानना चाहिए कि वह अपने यम-नियम-संयम का पक्का रहा। ऐसे लोग ही जीते-जी और मरते समय भी अपने लिये वचन को निभाते हैं और लिये गए संकल्प को भी पूरा करते हैं। महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि उसने कब कौन-सा नियम लिया बल्कि उसने अपने जीवन में मृत्यु की वेला आने पर भी कब कौन-सा नियम निभाया । व्यक्ति की कसौटी नियम लेने से नहीं, उसे निभाने से होती है। संकल्प लेना कसौटी नहीं है, संकल्प पूरा करना ही कसौटी है। जो बुरे वक़्त में हमारे काम आता है हम उसे अपना मित्र मानते हैं उसी तरह जो बुरे वक़्त में भी अपने नियम निभा लेता है नियम भी उसकी रक्षा किया करता है। सत्य स्वयं रक्षा करता है। सत्य ही ईश्वर है, परमात्मा है, इंसान का रक्षक है। लेकिन सत्य उसी की रक्षा करता है जो विपत्ति की वेला में भी अपने धर्म को निभाने के लिए तत्पर और दत्तचित्त रहता है। भगवान महावीर हमारे जीवन को नियमबद्ध देखना चाहते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में छोटे-मोटे नियम अवश्य होने चाहिए और उन्हें हर हालत में निभाने का जज़्बा, मनोबल भी रखना चाहिए। क्योंकि विपत्ति की वेला तो आएगी। मुझे लगता है कि वह विपत्ति की वेला नहीं, लिये गए नियमों की कसौटी होती है। मैंने सुना है भगवान कभी राम, कृष्ण, महावीर या महादेव के रूप में नहीं बल्कि कभी भी किसी भी रूप में प्रकट हो जाते हैं। ___कहते हैं कि साँई के घर पर एक व्यक्ति पहुँचा कि प्रभु कभी मेरे घर भी आहारचर्या के लिए आया करें। साँई ने कहा – तू रोज ही तो यहाँ मुझे चढ़ाकर जाता है तो तेरे घर आने की आवश्यकता नहीं है, और मैं तो कहता हूँ तू रोज भी यहाँ पर मत आया कर, तू जहाँ है वहीं से भोजन समर्पित कर दिया कर, मेरे पास अपने आप पहुँच जाएगा। भक्त हँसा और कहने लगा - साँई तुम भी कैसी बात करते हो ! अगर मैं लेकर नहीं आऊँगा तो तुम तक कैसे पहुंचेगा। तुम भूखे ही रह जाओगे। फिर भी मेरी इच्छा है कि तुम मेरे घर आओ। साँई ने कहा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelib२४१rg
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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