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________________ और जब गुस्सा शांत हो जाएगा तब भी यह पता रहेगा कि आपने कितने शब्द वांछित कहे और कितने शब्द अवांछित कह डाले। होशपूर्वक काम करने पर आप अपना मूल्यांकन करते रहेंगे । जीवन के लिए एक ही चीज़ चाहिए - होश और बोध। मुक्ति-तत्त्व को जीने के लिए एक ही सूत्र है - होश और बोधपूर्वक जीना । सहजता से जिओ, आरोपित जीवन नहीं। जो होना है वह तो होगा ही, केवल होश और बोध हमारे हाथ में है। हम सहजता से जिएँगे अब जो-जो उदय काल आता जाएगा उससे गुजर जाएँगे केवल होश और बोध के दीप को अपने हाथों में थामे रखेंगे। जो होना है वह तो होगा ही, उसे कोई टाल नहीं सकता। फिर हम उसमें अपना हस्तक्षेप क्यों करें। लेकिन अपने कहने से कोई व्यक्ति ग़लत रास्ते पर जाने से बच सकता है तो उसे ज़रूर बचाएँ। अपने विवेक का दीपक, होश और बोध का दीपक अपने साथ रखें, फिर जो होता चला जाए, हो। ज़िंदगी में जो भी रास्ते मिलें उनसे गुजर जाएँ, बोध केवल यह रखें कि आपको हाथों में, आँखों में, अन्तर्मन में होश ज़रूर बना रहे। अंधे होकर न गुजरें। गुज़रना तो पड़ेगा क्योंकि यह आपका प्रारब्ध है, कर्म है, हो सकता है यह आपके अतीत के कर्मों का परिणाम हो । होश का दीपक थामे रहकर मनुष्य के जीवन में जो होना है हो जाए । इससे मुक्ति होगी। __आचार्य कुंदकुंद ने बहुत गहरी बात कही है कि आत्मदृष्टा साधक या अन्तर्दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति चाहे सचेतन वस्तुओं का उपयोग करे, चाहे अचेतन वस्तुओं का उपयोग करे - दोनों के द्वारा कर्मों की निर्जरा होगी, वह मुक्त ही होगा बशर्ते अन्तर्दृष्टि उपलब्ध हो । यह लेश्या का सिद्धान्त हमें समझाता है कि हम लोगों को अपने-अपने भीतर उठने वाली लहरों की प्रवृत्तियों को समझना चाहिए, अपनी तरंगों और संस्कारों को समझना चाहिए और भली-भाँति देखने का प्रयत्न करना चाहिए कि हमारे लिए क्या शुभ है क्या अशुभ है, क्या उचित है क्या अनुचित है। जो कुछ हो रहा है वह उदयकाल है। ज्यों-ज्यों हमारे कषाय ठंडे होंगे त्यों-त्यों आत्मा में निर्मलता आती जाएगी। जब तक हम अंधे होकर चार कषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ के चंगुल में फँसे रहेंगे, इनके कारण हमारे भीतर जो शुभ या अशुभ प्रवृत्तियाँ जगती हैं - तब हमारी आत्मा में २३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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