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________________ भी वैसा ही परिणाम आने लगता है । अतः आत्मा की शुद्धि के लिए लेश्या की शुद्धि ज़रूरी है और लेश्या की शुद्धि के लिए कषायों का मंद होना ज़रूरी है । कषायों की मंदता के लिए होश और बोध का दीपक थामना ज़रूरी है । जिन्हें मुक्ति चाहिए वे आत्मा की शुद्धि के लिए प्रयत्नशील हों। आत्मा की शुद्धि लेश्याओं की शुद्धि से आएगी और लेश्याओं की शुद्धि कषायों की मंदता से आएगी तथा होश व बोध से कषायों में मंदता आएगी। छोटी-सी बात के लिए गुस्सा आ गया, प्रशंसा मिलने पर अहंकार के भाव पैदा हो गए, थोड़ी-सी भी अच्छी चीज़ देखी और मोह-माया जग गई । यह जो निमित्त पाते ही झट से उदय में आ जाते हैं ऐसी स्थिति में कषायों की मंदता के लिए होश और बोध के दीपक को थामना होगा और सोचना होगा पुनः पुनः उन्हीं कषायों को दोहराने से क्या हासिल हुआ। कल गुस्सा किया था, नतीज़ा शून्य । फालतू खुद कोही टेन्शन होता है। अगर होश होगा तो बोध आगे बढ़ता रहेगा । जैसे-जैसे बोध गहरा होगा कषाय कम होंगे। हमारी अन्तरात्मा हमें अच्छे परामर्श भी देती है । वह हमें झिंझोड़ती है कि हम कब तक इन बातों में फँसे रहेंगे । वह इनसे उपरत होने की प्रेरणा भी देती है कि आखिर क्या मिलने वाला है। आप दूसरे को अच्छा रास्ता सुझा सकते हैं चलना या न चलना उसकी जवाबदारी है । 1 मुझे सुकून है कि मेरे पिता व भाई कोई काम करते हैं तो मुझसे पूछते ज़रूर हैं। यह पिताजी का बड़प्पन था कि वे मुझे मान देते थे, अन्यथा पिता तो सदा ही स्वयं को पुत्र से अधिक समझदार समझते हैं । लेकिन मेरे पिताजी मुझसे पूछते ज़रूर थे कि फलाँ काम करना है, करें या न करें। भाई लोग भी छोटे से छोटे कार्य करने के पहले मुझे बता ज़रूर देते हैं । सुकून इस बात का है कि वे कुछ पूछते थे तो मैं बता ज़रूर देता था, पर इस बात की अपेक्षा नहीं करता था कि वे मेरी बात को मानें ही और उसे किया ही जाए। अगर आप अपेक्षा रखेंगे तो परेशानी का सामना कर पड़ सकता है कि मानते तो हैं नहीं फिर पूछते क्यों हैं। अपेक्षा रखने से मन में तनाव पैदा होता है, दिमाग बोझिल होता है। क्रोध पैदा होता है, आवेग आने लगता है कि पूछते तो आपसे हैं और करते मन की हैं। इसलिए या तो सलाह दो मत और अगर देते भी हो तो अपेक्षा मत रखो कि आपकी बात मानी ही जाए। किसी ने आपको स्वयं से अधिक ज्ञानी समझा Jain Education International For Personal & Private Use Only २३७ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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