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________________ ज़रूरी नहीं है कि मन उन्हें माने ही। उसके भीतर कुछ अलग कचरा भरा हुआ है। इसलिए हर बात मन तक उतर जाए यह ज़रूरी नहीं है। मन के भीतर कुछ निर्मलता आने के संयोग बनते हैं, भीतर का कषाय कुछ क्षीण होता है, तभी किसी संत-महंत या शास्त्र की अच्छी बात सुनने-पढ़ने को मिलती है, तब चमत्कार घटित हो जाता है तब कोई महावीर, बुद्ध, शंकराचार्य या कोई संत-महात्मा बन जाता है। कहा नहीं जा सकता कब किसके जीवन में क्या हो जाए। हम सभी को अपने-आप से रूबरू होना चाहिए कि हमारे मन की क्या स्थिति है। यह बचने-बचाने की बात नहीं है स्वीकार करने की है, खरी या खोटी जैसी भी है। कोई व्यक्ति आइने में चेहरा देखता है तो यह नहीं सोचता कि वह काला है तो दर्पण में क्यों देखे ? जैसा भी है, है - तभी तो वह अपने को सँवारने का प्रयत्न भी करता है। इसी तरह इंसान अपनी ओर से कोशिश तो करता है कि अपने मन को ठीक कर लूँ फिर अगर ठीक नहीं हो पाता तो क्या करें। ध्यान, योग, प्राणायाम करके मंदिर जाकर या अन्य किसी भी तरीके को अपनाकर हम अपने मन को ठीक करने का प्रयत्न तो ज़रूर करते ही हैं। हम सभी को अपने आप को समझना चाहिए। शब्द दो हैं - जोश और होश । केवल अंधे जोश के साथ करेंगे तो वह हमारे लिए गलत परिणामदायी हो सकता है, लेकिन होश के साथ किया काम संभव है स्वर्ग का पैगाम बन जाए, स्वर्ग की गति का आधार बन जाए, हमारे लिए मुक्ति का दरवाजा खोलने वाला बन जाए । संभव है, हो सकता है न भी हो, अगर होशपूर्वक करेंगे तो । जोश उस पर भी अतिजोश नुकसानदायक हो जाएगा। आत्म-विश्वास लाभकारी है, पर अतिआत्मविश्वास घाटे की चीज़ है। जो अति आत्म-विश्वास में जीते हैं वही मात खाते हैं। राजनेता अगर सोच लें कि चुनाव में उसे कौन हरा सकता है बस यही अतिविश्वास उसे ले डूबता है। अतिजोश काम का नहीं है, होशपूर्वक कोई भी काम किया जाए वह परफेक्ट होता है। अगर किसी बात को सुनकर गुस्सा भी आ जाए तो होशपूर्वक गुस्सा कीजिएगा। होश में, गुस्सा किया यह भी आपको पता रहेगा, आप गुस्से में बोल रहे हैं यह भी पता रहेगा, गुस्से में क्या बोल चुके हैं यह भी मालूम रहेगा २३५ www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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