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है। एक बार पुनः मौका आता है, वे संन्यास लेने को तत्पर होते हैं, तभी बेटा आता है और पिताजी के पाँव में रेशम के धागे बाँध देता है । पिताजी उन धागों तो गिनते हैं कुल बारह लपेटे होते हैं। आर्द्रकुमार सोचते हैं - प्रतीत होता है कि अभी भी मेरे अन्तराय कर्म क्षय नहीं हुए हैं। पूर्व जन्म कृत कर्म अभी भी मेरे पीछे लगे हुए हैं। बारह धागों का अर्थ निकालते हैं कि अभी बारह वर्ष और संसार में रहना है। बारह सालों तक पुनः संसार में रहते हैं लेकिन वे जागरूक साधक हैं। भोग भी अगर होशपूर्वक हो तो वह भोग भी व्यक्ति को धीरे-धीरे योग की ओर ही ले जाता है ।
बारह वर्ष बाद संन्यास लेकर जंगल की ओर जाते हैं। जंगल में उन्हें एक हाथी बँधा हुआ दिखाई देता है । जैसे ही हाथी ने उस संन्यासी को देखा उसने अपनी जंजीरें तोड़ दीं और संत की ओर दौड़ पड़ा। हाथी के संरक्षक चिल्लाये कि बचो-बचो, हाथी पागल हो गया है, लेकिन हाथी संत के पास पहुँचकर रुक जाता है, उन्हें प्रणाम करता है और जंगल की ओर चला जाता है । हाथी के संरक्षक उनके पास पहुँचते हैं और कहते हैं - आश्चर्य, एक पागल हाथी तुम्हारे सामने आकर नतमस्तक हो गया। आर्द्रकुमार ने कहा- तुम्हें जंजीरों को तोड़ना कठिन लगता होगा लेकिन हाथी के द्वारा लोहे की जंजीरों को तोड़ना उतना कठिन नहीं था जितना मेरे द्वारा रेशम की जंजीरों को तोड़ना कठिन हो गया था । जंजीरें तो लोहे की थीं लेकिन मेरी जंजीरें तो मोह की, कर्मों की, लेश्याओं की जंजीरें थीं।
पता नहीं चलता कब कौनसे जन्म का कर्म उदय में आ जाए और हम सबको बहाकर ले जाए। ये कर्म ही लेश्याएँ हैं, ये लेश्याएँ ही इन्सान की प्रवृत्तियाँ हैं, ये प्रवृत्तियाँ ही हमें मुक्त करती हैं या बंधनों से बाँधा करती हैं । हर इन्सान अपना-अपना अनुयायी है । कोई किसी पंथ या धर्म का अनुयायी नहीं होता। वह केवल स्वयं का अनुयायी होता है । मन जैसी प्रेरणा देता है व्यक्ति वैसा ही करने लगता है। अच्छी बातें इसलिए कही सुनी जाती हैं क्योंकि इन्सान के मन को जैसे निमित्त मिलेंगे, जैसी प्रेरणाएँ मिलेंगी, इन्सान का मन संभव है कुछ प्रेरित हो जाए और उछल-कूद करने वाला यह मन कुछ सही रास्ते पर चलने को तत्पर हो जाए। अच्छी बातें जो कही और सुनी जा रही हैं,
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