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हमने पॉजिटिव व्यवहार किया। मैंने संत एकनाथ के बारे में सुना है कि उन्होंने कभी गुस्सा किया ही नहीं, उन्हें कभी क्रोध आया ही नहीं। तब गाँव में सभा हुई कि अगर कोई एकनाथ जी को गुस्सा दिला दे तो उसे दो सौ रुपये इनाम मिलेगा। सभी जानते थे कि उन्हें गुस्सा दिलाना बहुत मुश्किल काम है क्योंकि वे तो हमेशा शांत रहते हैं। किसी के ऊपर राख गिराई जाए फिर भी खुदा का शुक्र अदा करे कि हम तो आग के लायक थे राख ही गिरी - ऐसा व्यक्ति तो देवपुरुष होता है। संतों में भी महासंत होता है । किसी ब्राह्मण पंडित को बात जम गई कि वह संत एकनाथ को गुस्सा दिलाएगा और दो सौ रुपये जीतेगा।
दूसरे दिन वह लोटा लेकर जंगल में शौच के लिए गया। जब वापस आया तो हाथ शुद्ध नहीं किये और लोटे के साथ ही संत एकनाथ के घर में चला गया। एकनाथ उस समय भगवत् पूजा कर रहे थे । वह पंडित दूषित हाथ और लोटा लिये हुए एकनाथ की गोद में जा बैठा । दूसरा कोई होता तो एकदम आग-बबूला हो उठता लेकिन एकनाथ ने प्यार से उसका माथा सहलाया और बोले - वाह, भई वाह, मैंने अपने से अनुराग करने वाले बहुत से लोग देखे, पर तेरे जैसा अनुरागी कोई न देखा कि जो सीधा गोद में आ बैठा । तेरा तो प्रेम करने का तरीका ही बड़ा विलक्षण है। तुम आराम से बैठो, तुम्हें भी भजन का, भक्ति का फल मिलेगा । आओ हम दोनों मिलकर भजन करते हैं ।
पंडित को महसूस हुआ कि एकनाथ जी को गुस्सा दिलाना असंभव है, उसने प्रणाम किया और चला गया। दूसरे दिन फिर आया । एकनाथ जी भोजन करने बैठे ही थे कि उसे भी भोजन करने का निमंत्रण दे डाला। वह पास में आकर बैठ गया तभी पत्नी खाना लेकर आई और जैसे ही परोसने लगी कि पंडित उसकी पीठ पर चढ़ गया । सामान्य रूप से अगर ऐसा हो जाए तो हर पति क्रोधित हो उठेगा कि अनजाना व्यक्ति पत्नी के साथ यह क्या व्यवहार कर रहा है । पर एकनाथ जी ने पत्नी से कहा देख ध्यान रखना यह कहीं नीचे न गिर जाए। पत्नी एकनाथ जी से भी एक कदम आगे, उसने कहा - अजी आप चिंता न कीजिये । मुझे मुन्ने को सँभालना अच्छी तरह आता है । यह है व्यक्ति की शांति, समता । विपरीत परिस्थिति में भी, उपेक्षा किये जाने पर भी अपने आप पर संयम रखना।
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