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________________ यह जो भौतिक सुख-साधन के उपकरण हैं उन पर भी यदि हम संयम का अंकुश लगाते हैं तो यह संयम - जीवन का ही अनुमोदन और समर्थन है । एक संयम और अपनाया जाए, वह है उपेक्षाओं पर संयम । यानी कि अगर कोई हमारी उपेक्षा कर रहा है तब भी हम स्वयं पर संयम रखेंगे। देखने में आता है कि सास बहू की उपेक्षा कर देती है। पिता के द्वारा पुत्र की उपेक्षा हो जाती है, घर में शादी हो तो निकट के रिश्तेदार को बुलाना भूल ही जाते हैं । यह जो उपेक्षा हुई इस कारण हमारे मन में, दिमाग पर, वाणी पर, काया में, व्यवहार में जो उग्रता आ जाती है, ऐसा व्यवहार न हो। जैसे ही उपेक्षा हो जाए तो स्वयं को कहें कि कोई बात नहीं जो उन्होंने मुझ पर गौर नहीं किया, लेकिन मुझे अपना कर्त्तव्य निभाना चाहिए। यह भी संयम है । अमूमन क्रोध जब भी आता है उपेक्षित अपेक्षाओं के कारण आता है । जब हमारे अहंकार को ठेस लगती है क्रोध आ जाता है । मैंने पहले चार संयम बताए लेकिन यह पाँचवाँ संयम सबसे ऊपर है कि किसी व्यक्ति ने दूसरे के द्वारा की जा रही उपेक्षा को भी संयम भाव से स्वीकार कर लिया। उन्होंने कह दिया हरि इच्छा । कोई भी नहीं चाहता कि कड़वी बात सुनने को मिले, उपेक्षा हो, अपमान मिले फिर भी हो जाता है । यह सहज है, व्यवहार में ऐसा हो जाया करता है। जब ऐसा हो जाए तो अंगीकार कर लें और विचारें कि आप तो उपेक्षा - संयम को जीने वाले हैं। - 1 कहा जाता है कि सुकरात की पत्नी बहुत गुस्सैल प्रकृति की थी । लेकिन जब कोई भी सुकरात को यह बात कहता कि आपकी पत्नी इतना चिड़चिड़ाती हैं और आप कुछ भी नहीं कहते । वे कहते - उसका चिढ़ना मेरे लिए उपयोगी है तब शिष्य पूछते - कैसे ? सुकरात कहते - इस तरह वह प्रतिदिन मेरी समता और शांति की कसौटी बन जाती है। मुझे गुफाओं में जाकर साधना करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। मैं घर में ही समताभावी हो गया हूँ । ये रोजाना कुछ-नकुछ ऐसा कह देती है कि मुझे समता का, शांति का अभ्यास यहीं हो जाता है । और अगर उसने मेरी उपेक्षा की और मैंने अपने आप पर संयम रखा तो यह हो गया संत - जीवन । यह तो दार्शनिक का नज़रिया है कि किसी ने हमें टेढ़े शब्द कहे फिर भी २२० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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