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________________ है लेकिन व्यवहार में मुश्किल में पड़ जाता है। इस तरह दबाव में लिये गये नियमों को १०% लोग ही पालन कर पाते हैं। शेष तो थोड़े दिन ही निभा पाते हैं और फिर वे नियम छूट जाते हैं। नियम और संयम में फ़र्क है - नियम तो लिया जाता है और संयम अपनाया जाता है। अगर कोई श्रेष्ठ त्याग की ओर चला जाता है तो वह श्रेष्ठ अवश्य कहलाएगा लेकिन श्रेष्ठ की ओर नहीं बढ़ सकता तो इसका मतलब यह नहीं कि वह मोहग्रस्त है। किसी के पास माना कि सोना है, चाँदी है लेकिन लिमिट में हो। वैसे भी आजकल चाँदी का उपयोग कौन करता है। चाँदी के न बर्तन काम में लेते हैं न ही गहने बनवाते हैं, इन्हें तो पूरी तरह से छोड़ ही देना चाहिए। अगर पूरी तरह त्याग न भी कर पाएँ तो उसे अपने बच्चों के लिए रख दें। वैसे भी सोना तो फिक्स्ड डिपॉजिट है। हम यह न कहेंगे कि उसे सोने से मोह है, बल्कि यह तो दायित्व-बोध है कि उस सोने को बच्चों की शादी में उपयोग करना है। जो सौ प्रतिशत उपयोग कर रहा है उससे तो कम ही मोह कहलाएगा। पुरुष भी अगर यह संयम अपनाते हैं कि मैं निश्चित संख्या में ही अपने कपड़े रखूगा, या इतने ही वाहन रखूगा तो यह उनका संयम होगा। यह उनके मोह को कम करेगा। वस्त्रों को देखकर जो तमन्ना जगती है उस पर किसी-नकिसी दृष्टि से अंकुश ज़रूर लगेगा। इसीलिए परिग्रह-परिमाण व्रत की बात आती है। अर्थात् हम जो किसी भी प्रकार का परिग्रह करते हैं उसकी एक सीमा निर्धारित हो जाए। एक तृप्ति आनी चाहिए। यह तृप्ति ही संयम को जन्म देती है। जब वृत्ति ही पैदा न होगी तब तृप्ति आएगी। किसी धनपति के पास आठ-दस कारें हों तो वह सोचे कि उसे कितनी कारों की वास्तव में आवश्यकता है। तब ही उसे कारों से लगाव कम होगा। तब कोई कितना भी अमीर क्यों न हो जाए कारों के प्रति उसका व्यामोह और आसक्ति नहीं होगी। उसकी अन्तरात्मा में अनासक्ति का फूल खिला रहेगा। कारों को देखकर रोज-ब-रोज जो तृष्णा उठती थी, अब वह तृष्णा पैदा न होगी। उसे लगेगा कि उसका तो नियम है उसे अब कार नहीं खरीदनी है। अगर नई कार का मजा लेना है तो लो पर पहले की कार में से एक कार बेचकर या उसे छोड़कर । कुछ तो संयम होना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jaineli2 ? Sorg
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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