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________________ गलत वातावरण बनेंगे, गलत निमित्त आएँगे, तब यह उसका संयम होगा जो अपने अपमान और उपेक्षा से विचलित न होगा। अपने मन में शांति रखना, अपनी ओर से प्रसन्न व्यवहार करना ही वास्तविक संयम है। यही सबसे कठिन है। अगर इस एक संयम को अपना लिया तो शेष चार तो अपने आप ही सधने लग जायेंगे। तन, मन, वाणी पर इनका प्रभाव आना शुरू हो जाएगा। हम लोगों से जितना बने संयम का सम्मान करना चाहिए। अपने जीवन मेंमनोगत, कायागत, वाणीगत या सुख-साधन के उपकरणों का संयम, उपेक्षाओं का संयम अपनाकर ही जीना चाहिए। हमें कीचड़ में कमल की तरह जीना चाहिए। हम सभी हिलमिलकर प्रेम से रहें, खुशी से जिएँ पर कमल के फूल की तरह निर्लिप्त रहें। वेदों ने इसीलिए जीवन को चार चरणों में जीने की व्यवस्था दी थी - ब्रह्मचर्य-आश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ और संन्यास-आश्रम । ये चार चरण संयमपूर्वक जीने के लिए हैं। अगर हम व्यक्ति की आयु सौ वर्ष मानते हैं तो जो पच्चीस वर्ष की आयु तक के हैं वे अपनी शिक्षा पढ़ाई पूरी कर चुके हैं तो गृहस्थ-आश्रम में प्रवेश करें, इसके पूर्व संयम रखें और अस्सी वर्ष की उम्र मानते हैं तो बीस वर्ष तक संयम रखें। दूसरे चरण में प्रवेश करने पर दूसरा चरण ही जिएँ, न कि ताउम्र गृहस्थ जीवन ही जीते रहें। अमुक सीमा तक गृहस्थ आश्रम में रहें लेकिन पचास की उम्र पूरी होते ही तीसरे आश्रम की ओर कदम बढ़ाने का प्रयत्न करें । तीन आश्रमों तक घर में रहकर भी अनासक्त और सदाबहार प्रसन्न रहें। चौथा संन्यास आश्रम है - इसमें घर में रहते हुए भी संत-जीवन जिएँ । भूल जाएँ कि कोई आपकी पत्नी रही, माता-पिता या बच्चे रहे। अब अगर बहू हमारी उपेक्षा कर दे तो मन की कसौटी कसें कि इसका मन पर बुरा प्रभाव पड़ा या बिल्कुल सहज रहे। अगर सहज रह सके तो वानप्रस्थ से संन्यास की ओर बढ़ गये। लेकिन सहज न रह सके, उपेक्षापूर्ण व्यवहार से प्रभावित हो गये तो समझ लेना कि उम्र से भले ही वानप्रस्थी या संन्यासी हो गए हो पर मन तो अभी गृहस्थी में ही उलझा हुआ है। मन अभी तक उठा-पटक और उतार-चढ़ाव से घिरा हुआ है। लेश्याओं से घिरा है। संयम यही है कि व्यक्ति स्वयं को कसता रहे । कसौटी होती रहे। अगर २२२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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