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गाली-गलौच, क्रोध-कषाय करते हो तो यह तपस्या नहीं, विषमता है।
महावीर का मार्ग जीतना और जिताना सिखाता है। एक जीतने वाला सिकन्दर और एक जीतने वाला महावीर कहलाता है। जीतते दोनों ही हैं, पर फ़र्क यह है कि एक हज़ारों लोगों को जीतता है, दूसरा स्वयं को, अपने-आपको जीतता है। महावीर कहते हैं दूसरों को जीतना आसान है, पर अपने-आप को जीतना हजारों लोगों को जीतने से भी ज़्यादा कठिन है। खुद को जीतना ही परम विजय है। हज़ारों लोगों को जीतने वाला अन्ततः खुद से तो हारा हुआ ही है। वह हारा हुआ है खुद के क्रोध से, अभिमान से, स्वार्थों से, मोह से, पत्नीपति, पुत्र-पुत्री के मोह से, सम्पत्ति-भूमि के व्यामोह से हारा हुआ है।
जाति और वंश के नाम पर कहें तो दुनिया में करोड़ों जैन हैं। महावीर की परिभाषा में वास्तविक जैन वही है जिसने स्वयं को जीता है। इस दृष्टि से गिनेचुने लोग ही जैन की श्रेणी में आते हैं और उन्हीं लोगों से जैन धर्म गौरवान्वित है। अगर जाति के नाम पर कहा जाए तो करोड़ों हिन्दू हैं, पर मन की हीन-भावनाओं को दूर करके, कृष्ण के शंखनाद को सुनकर आत्म-विजय की
ओर कदम बढ़ा देने वाले लोग गिनती के हैं और इन्हीं गिनती के लोगों के बल पर हिन्दू धर्म टिका हुआ है। कट्टरता फैलाने वाले मुसलमान बहुत हैं लेकिन अपने ईमान पर अडिग रहने वाले गिने-चुने हैं और उन्हीं ईमानदार मुसलमानों से ही इस्लाम धर्म गौरवान्वित है। ईसाई भी करोड़ों होंगे, पर ईश्वर के मार्ग पर हक़ीक़त में चलने वाले लोग, प्राणीमात्र में ईश्वर के दर्शन करने वाले कम ही हैं
और उन्हीं से ईसाई धर्म गौरवान्वित है। ये गिने-चुने लोग ही हक़ीक़त में धरती पर देवता के समान हैं। मैं नहीं जानता कि देवलोक में देवता कहाँ रहते होंगे, पर ये थोड़े से हिन्दू, जैन, ईसाई, मुसलमान या अन्य डिवाइन लाइफ वाले लोग ही धरती के जीते-जागते देवता हैं।
ऐसे देवता कहीं भी मिल जाएँ तो उनके चरण-स्पर्श ज़रूर करना, उनके पाँव की माटी को अपने माथे से ज़रूर लगाना, ऐसा करना किसी महान से महान मंदिर के, भगवान के चंदन की चुटकी से ज़्यादा मूल्यवान कहलाएगा। मुझे महावीर से प्रेम है क्योंकि उन्होंने खुद को जीता। उनके जीवन से मैंने भी रोशनी लेने की कोशिश की है। मुझे उनसे प्रेम है क्योंकि मैंने उनके चारित्र को
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