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पढ़कर अपने चरित्र को बनाने की कोशिश की है। मुझे उनसे प्रेम है लेकिन मैंने उनकी पूजा अधिक नहीं की है, पर उनके जीवन से बहुत कुछ सीखा है । हज़ारों साल पहले हुए किसी महान् इंसान की पूजा ही करते रहने की आवश्यकता नहीं है। हाँ, उनके जीवन से प्रकाश की एक किरण अपने भीतर, अपने जीवन में उतार लेना सच्ची पूजा और इबादत है। मोहम्मद साहब की जीवन भर इबादत करने की बजाय उनके जीवन से दो गुण भी अगर हम ले लेते हैं तो वे दो गुण हमारे द्वारा हज़ारों बार अदा की गई नमाज़ से ज़्यादा बेशकीमती हो जाएँगे । राम नाम की लोग डायरियाँ भर रहे हैं, भारत में राम के नाम की बैंक चलती है, अच्छी बात है, इसी बहाने लोग महापुरुषों का स्मरण तो करते हैं लेकिन मेरी विनम्र बुद्धि यही प्रेरणा देगी कि राम जी का नाम जिंदगी भर लेने की बजाय जैसा जीवन रामजी और भरत जी गए उसका आंशिक असर भी हम भाइयों के बीच आ जाता है, उसकी दो किरणें भी हमारे साथ जुड़ जाती हैं तो मैं समझता हूँ कि राम का नाम एक लाख दफ़ा लेने की बजाय यह अधिक बेशकीमती होगा। महापुरुषों की एक किरण भी हमारा भला कर सकती है। बाकी दुनिया के किसी महापुरुष ने नहीं कहा कि आप उनके नाम को जीवन भर रटते रहें। महापुरुषों ने सदा यही कहा कि उन्होंने जो नेकी और भलाई का मार्ग बताया है उन रास्तों पर चलें, यही उनका पंथ है, धर्म है।
सिख वह नहीं है जो सिर पर केश रखता है, कटार लटकाता है, कंघा रखता है, कड़ा व कच्छा पहनता है। यह तो पहचान भर के लिए है। सच्चा सिख तो वह है जो अपने गुरु के बताये हुए रास्ते पर चलता है, सीख लेता है, शिक्षा लेता है। सिख का अर्थ ही शिष्य है। शिष्य होना ज़रूरी है। जिन्हें गुरु का मान-सम्मान मिल रहा है उन्हें भी यह मानना चाहिए कि वे शिष्य हैं, विद्यार्थी हैं। कोई गुरु माने तो माने यह उनका बड़प्पन है। तुम तो स्वयं को शिष्य मानो, चरण-किंकर मानो, दास मानो।
मैं हूँ ठाकुर जी का दास,
इसलिए नहीं रहता उदास। स्वयं को दास मानो, विद्यार्थी मानो । मालिक मान लिया तो गलती कर जाओगे। कौन मालिक ? किसका मालिक ? सबका मालिक एक है। कौन
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