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________________ जिएगा वही मुक्ति के अधिक निकट पहुँचेगा । जो गृहस्थ हैं वे भी संयम से जिएँ और जो संत बन गये हैं, उनकी तो संयम ही परिभाषा होगी। संत की तो आत्मा ही संयम है। संत - जीवन का सार ही संयम है। गृहस्थ अगर क्रोध करता है तो ठीक नहीं है, पर संत का गुस्सा तो अक्षम्य है। गृहस्थ के संग्रह को तो लोभ की संज्ञा दी जा सकती है, पर संत के परिग्रह को क्षमा नहीं किया जा सकता। ईश्वर तीन लोगों को कभी पसंद नहीं करता। पहला है - अन्यायी न्यायाधीश । अन्याय बुरा है, पर यदि कोई न्यायाधीश के पद पर बैठकर अन्याय करता है, तो ईश्वर ऐसे लोगों से ख़फ़ा होता है और उन्हें दंडित करता है। दूसरा है - कंजूस अमीर । कंजूसी पाप है, पर यदि कोई अमीर होकर भी दीन-दुखियों की मदद नहीं करता , कंजूसी-कृपणता रखता है, ऐसे लोगों को ईश्वर की नाराज़गी झेलनी पड़ती है। तीसरा है - व्यभिचारी साधु । व्यभिचार पाप है, पर यदि कोई संत बनकर भी दुराचारी और व्यभिचारी होता है, तो ईश्वर ऐसे साधु-संतों से ख़फ़ा रहता है। ऐसे तीनों लोगों के पुण्य मिट जाते हैं। उन्हें नरक की घोर यातना झेलनी पड़ती है। जीवन के दो ही पहलू हैं - संयम और असंयम । जो संयम से जिए वह संत और असंयम से जीने वाला ही गृहस्थ या संसारी। कहीं भी कोई साधु या संत दिख जाए तो उसके संयमी होने के कारण ही हम उसको मान-सम्मान देते हैं। केवल वेश को दी जाने वाली इज़्ज़त स्थायी नहीं होती। प्रभाव तो केवल संयम, त्याग, तप-जप, ज्ञान-ध्यान ही डालता है। संयम को अलग-अलग पहलुओं और ढंग से जिया जा सकता है। पहला है : मन का संयम । मन का संयम अपनाकर बुरे विचारों को न आने दें। हमारे चित्त के संस्कारों के कारण अगर कोई गलत विचार उठ रहे हैं तो उन पर मन का नियंत्रण कर लेना चाहिए । अथवा किन्हीं निमित्तों को पाकर किसी घटना, दुर्घटना, परिस्थिति से प्रेरित होकर हमारे मन में गलत विचार उठ रहे हों तो उन पर अंकुश कर लेना कि नहीं हमें ऐसा नहीं सोचना चाहिए - यह मन का संयम है। गलत विचार उठ सकते हैं। किसी के प्रति किसी के मन में गलत विचार, दूषित विचार उठ सकते हैं, गलत भाव पैदा हो सकते हैं, पर उस समय में अपने आप पर नियंत्रण करना ही मन का संयम है। २१४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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