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________________ 1 तरह क्रोध और भोग भी नहीं करते । वे हमसे अधिक मुक्त होते हैं। हमारी तरह वे किसी प्रकार का भेदभाव भी नहीं करते । वे तो सहज नैसर्गिक, प्राकृतिक जीवन जीते हैं और इसी तरह चले भी जाते हैं । 1 जन्म-जन्मान्तर की गाँठें, वैर-विरोध की भावनाएँ, वैमनस्य रखना ये इंसानों के खेल हैं। आज हर इंसान गैस का सिलेण्डर हो गया है कि जरा सी चिंगारी लगी नहीं कि भड़क उठता है। हर आदमी माचिस की तीली बन चुका है । थोड़ा-सा घर्षण लगते ही जैसे तीली सुलग उठती है, वैसे ही आदमी छोटी-सी बात होते ही, थोड़ा-सा नुकसान होते ही भभक उठता है। संयम यही सिखाता है कि माचिस की तीली या गैस के सिलेण्डर मत बनो । ठीक है कि हम बर्फ के समान शीतल नहीं बन सकते, लेकिन शांत तो बने रह सकते हैं । संत मत बनो, पर शांत तो अवश्य बन जाओ। शांत बनना संत बनने की तरह है । जो शांत है, वह वास्तव में संत ही है। बाहर का संत बने तो भी क्या, और न बने तो भी क्या, असली तो स्वभाव का संत बनना महत्त्वपूर्ण है । प्रत्येक व्यक्ति के लिए आध्यात्मिक होना ज़रूरी नहीं है, पर प्रत्येक व्यक्ति के मन में शांति होना निहायत ज़रूरी है। एक महानुभाव ने मुझसे कहा जीवन में पहली बार आज सुकून और गौरव अनुभव हुआ। मैंने अपनी बच्ची से पूछा कि अब तुम शादी लायक हो चुकी हो तुम्हारे लिए कैसे लड़के की तलाश की जाए ? एम.बी.ए., सी.ए., इंजीनियर या व्यापारी ? बच्ची ने कहा पापा ! यह सब आप निर्णय करें, पर केवल यह देख लें कि उसका स्वभाव अच्छा हो । मैंने बच्ची से तरह का स्वभाव ? उसने कहा 1 पूछा किस पापा ! आपके जैसा । - Jain Education International - - - - उस महानुभाव ने कहा - मुझे पहली बार सुकून मिला कि मैं और किसी का आदर्श बन पाया या न बन पाया पर अपने बच्चों का आदर्श ज़रूर बन गया। हम अच्छे स्वभाव के मालिक बनें। लोग महाराज तो बन जाते हैं, पर अपने स्वभाव को वैसा नहीं बना पाते । संत भी आपस में लड़ने लग जाते हैं । संयम का सम्बन्ध स्वभाव से है। तुम अच्छे स्वभाव के मालिक बनो । बुद्ध और महावीर का पहला संदेश ही यही रहा कि हर व्यक्ति संयम के रास्ते पर आए, संयम के रास्ते पर चले । जो संयम को अपने जीवन में अधिकाधिक For Personal & Private Use Only २१३ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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