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________________ की सेतु है। संसार में रहो, प्रेम से रहो, पर सहजता से, आसक्त होकर नहीं। आसक्ति व्यक्ति-विशेष से होती है, वस्तु-विशेष से होती है। प्रेम सबसे होता है। प्रेम पूज्य है, प्रेम समर्पण है, प्रेम आशीष है। प्रेम नाव है, प्रेम पार लगाता है। आसक्ति लंगर है । बाँधे रखती है। आज हम आसक्ति पर अंकुश लगाएँगे। आसक्ति को जीतेंगे। आसक्ति पर विजय पाने का सूत्र है - संयम । महावीर संयम पर जोर देते हैं। संयम यानी अंकुश । संयम यानी नियंत्रण । संयम यानी मर्यादा की लक्ष्मणरेखा । ज्ञानियों ने संसार के रस-रंग में जीते हुए इंसान को आगे बढ़ने के लिए जो सीढ़ी बताई वह है - संयम । संयम और अनुशासन के अंकुश से व्यक्ति अपने जीवन को बाँधे । अन्य कोई हमें संयम या अनुशासन में जकड़े इससे पहले ही अच्छा होगा कि हम खुद ही स्वयं को संयम और अनुशासन में रखें । कोई हमें लताड़ते हुए बोलने की तमीज़ सिखाये उसके पहले ही हम तमीज़ से पेश, आएँ, तमीज़ से बोलें । अर्थात् किसी को कुछ कहने का अवसर न देते हुए हम अपने आप को, अपने मन, वाणी, काया को इतना संयमित कर लें कि दूसरा हम पर कोई इल्ज़ाम न लगा सके । आप जानते हैं कि कछुआ अपने हाथ-पैरों को फैलाकर चलता है लेकिन ख़तरा उपस्थित होते ही अपने हाथ-पैरों को अपने भीतर समेट लेता है। स्वयं को अपने में समेट लेना ही संयम है। । संयम व्यक्ति के व्यक्तिगत और चारित्रिक जीवन को सुरक्षित रखता है, परिवार में मर्यादित जीवन जीने का अवसर देता है। संयम सामाजिक स्तर पर भी उसकी मर्यादा और गरिमा बनाए रखता है। इस प्रकार संयम ही मुक्ति का आधार हुआ, समाज परिवार के बीच मर्यादित ढंग से जीवन जीने का तरीका हुआ। संयम अर्थात् नियंत्रण । स्वयं को कन्ट्रोल करना । एक मम्मी-पापा कब तक बच्चे पर नियंत्रण रखेंगे। जब तक पंछी के पर नहीं निकल जाते तभी तक पक्षी या माता-पिता अपने बच्चे को अपने घोंसले में रखेंगे कि उन्हें कोई क्षति न पहुँचे लेकिन वयस्क हो जाने पर, पंख निकल आने पर चिड़िया माता-पिता खुद ही उन्हें आकाश में उड़ा देते हैं। पंछी हम इन्सानों की तरह मोह-माया नहीं करते, न ही हमारी तरह लोभ और संग्रह करते हैं, वे हमारी २१२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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