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________________ हम भी जा रहे हैं लेकिन जो बात उनमें थी हममें न आ सकी। वे एक-दूसरे के लिए अपने जीवन का बलिदान कर देते थे और हम....! ज्ञानी और महान् लोग तो दुश्मन के साथ भी मित्र जैसा व्यवहार करते हैं पर हल्के किस्म के लोग मित्र के साथ भी असभ्यता का व्यवहार कर बैठते हैं। ज्ञान तो सभी के लिए ज़रूरी है। ज्ञान का पहला चरण साक्षरता है लेकिन साक्षर हो जाने से ही कुछ नहीं होता और न ही स्कूल कॉलेजों की पढ़ाई से कुछ होने वाला है। पढ़ाई और शिक्षा के साथ इन्सानियत का और मनुष्य का निर्माण होना चाहिए, जीवन का निर्माण होना चाहिए। ज्ञान हमारे लिए प्रकाश और जलते हुए दीपक की तरह है। ज्ञान हमारे जीवन की आँख है। जिस तरह शरीर में आँख सर्वाधिक मूल्यवान है उसी तरह जीवन में ज्ञान सर्वाधिक मूल्यवान है। अज्ञानी का क्या अर्थ ? अज्ञानी का क्या मूल्य ? ज्ञान के द्वार खुलने चाहिए। पहले चरण में स्कूल, कॉलेज, अध्यापक, प्रोफेसर के द्वारा, दूसरे चरण में संतजन, गुरुजन, शास्त्रविदों के द्वारा और अंत में अपने आपसे खुलें। इस तरह ज्ञान-प्राप्ति के तीन द्वार हो गए। पहला द्वार है विद्यालय, दूसरा द्वार है सत्संग और तीसरा द्वार है अन्तर् आत्मा या अन्तर्मन। जिसने ऋग्वेद को समझ लिया उसने ऋषि-मुनियों द्वारा अर्जित समस्त ज्ञान को समझ लिया। जिसने सामवेद को समझा उसने देवी-देवताओं को आमन्त्रित करने का तरीका जान लिया। जिसने अथर्ववेद को समझ लिया उसने सारे वेद समझ लिए पर सारे वेद पढ़कर भी निस्तार नहीं होने वाला, व्यक्ति का असली निस्तार तभी होगा जब वह एक और वेद - अंतर्वेद - का अध्ययन करेगा। जब वह स्वयं के अंतरघट को जानेगा, उसमें स्थित होगा तब ही सच्चा वेदांती, सच्चा ज्ञानी कहलाएगा। कबीर ने कहा है करनी करे सो पूत हमारा, कथनी करे सो नाती, रहणी करे सो गुरु हमारा, हम रहणी के साथी। जो अच्छा काम करेगा वह हमारे लिए पुत्र के समान है, जो अच्छे वचन बोलता है, अच्छी बातें करता है वह हमारे लिए दोहिते के समान है, जो अपने आप में स्थित रहता है आत्मज्ञानी बन जाता है वह हमारे लिए गुरु के समान है और हम आत्मस्थित गुरु के साथ रहना चाहेंगे, वही हमारा सच्चा साथी होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only २०५ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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