SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिया, मौज-मस्ती खूब कर ली, अब अपने लिए जागो। लेकिन प्रदर्शन की प्रवृत्ति के कारण सफेद बालों को रोज-ब-रोज काला करते हैं, सुगंधित साबुन से स्नान करते हैं, बिना प्रेस के कपड़े पहने नहीं जाते, हर चीज़ बेहतरीन होनी चाहिए। खान-पान में भी प्रदर्शन बढ़ा है। शादी-विवाह में होने वाली दावतें तो प्रतिस्पर्धा का नमूना हो गई हैं। महावीर ने सम्यक्दर्शन की बात कही, न कि प्रदर्शन की। वे नहीं चाहते कि उनका धर्म प्रदर्शन की वस्तु बने। वे चाहते हैं उनका धर्म, उनके सिद्धान्त दर्शन का विषय बने। दर्शन यानी सही, सम्यक्, सकारात्मक, सृजनात्मक, रचनात्मक, आध्यात्मिक, धार्मिक, आत्म-दृष्टि वाला धर्म हो। अन्तर्दृष्टि का वही मूल्य है जो शून्य के पहले लिखे किसी अंक का होता है। जैसे कि कोई व्यक्ति चैक भर रहा है उसमें शून्य, शून्य, शून्य..... भरता जा रहा है लेकिन इन शून्यों की कीमत शून्य से पहले लिखे अंक के बिना नहीं हो सकती। शून्य के पहले लिखा अंक शून्य को दस गुना, सौ गुना, हजार गुना, लाख गुना बढ़ा देता है लेकिन अंक को हटा दिया जाए तो सारे शून्य, शून्य ही रह जाएंगे, उनका कोई अर्थ नहीं होगा। ऐसे ही हमारे जीवन में भी हमारी अन्तर्दृष्टि, सोच, नज़रिया अगर धर्ममय, शांतिमय और पवित्र, अध्यात्ममय है तो हमारे जीवन का प्रत्येक पहलू, प्रत्येक क़दम कल्याणकारी हो जाएगा। महावीर के अनुसार अगर दर्शन सही होगा तो आपका विश्वास भी सही होगा। दर्शन सही तो श्रद्धा भी सही। अच्छे विश्वास को जन्म देने के लिए, अच्छी श्रद्धा को जन्म देने के लिए व्यक्ति की दृष्टि ठीक होना ज़रूरी है। बिना विश्वास के दुनिया तो क्या परमात्मा से भी नहीं मिला जा सकता। विश्वास के बलबूते ही तो नाई को अपना सिर सौंप देते हैं कि वह सिर्फ बाल ही काटेगा, गला नहीं। ड्राइवर पर विश्वास करके उसे लाखों की कार सौंप देते हैं कि वह हमें सही सलामत गंतव्य पर पहुँचा देगा। विश्वास करके ही तो पत्नी या स्त्री को अपने जीवन का सबसे बड़ा आधार समझ लेते हैं। बिना विश्वास के दुनिया में कैसे जी पाएँगे। विश्वास तभी होगा जब व्यक्ति का दर्शन सम्यक् होगा। गलत दृश्य सामने आ भी जाएँ तो आँखों का संयम ले लो, उससे भी सही देखने का प्रयत्न करो। यह संसार स्वर्ग जैसा है। संसार है तभी तो मुक्ति का आधार भी है। मुक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy