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________________ सम्यक्चारित्र का अर्थ है- सही सही, सुन्दर सुन्दर करो। यदि हम पुरानी भाषा को हटा दें तो हमारे लिए साधना के मार्ग को समझना बहुत व्यावहारिक हो जाएगा, साधना के मार्ग को हम सहजता, सरलता के साथ अपने जीवन में जी सकेंगे। पहला मार्ग है सही सही व सुंदर सुंदर देखो। साधक के लिए ज़रूरी है कि पहले वह अपने नज़रिए को बेहतर बना ले। यह नींव का काम करेगा। इंसान का जैसा नज़रिया होता है, जैसी दृष्टि होती है वैसी ही सृष्टि हुआ करती है। एक पापी व्यक्ति अगर दुनिया को देखेगा तो पाप की पगडंडियाँ ही ढूँढ़ेगा और पुण्यात्मा व्यक्ति संसार में पुण्य के पथ का ही सृजन करेगा। सब कुछ इंसान की अपनी नज़र पर, अपनी दृष्टि पर, अपने नज़रिए पर निर्भर है। अगर हमारा नज़रिया नकारात्मक है तो परिणाम नकारात्मक और यदि नज़रिया सकारात्मक है, आध्यात्मिक है तो जीवन का परिणाम भी सकारात्मक और आध्यात्मिक होगा। इसीलिए महावीर चाहते हैं कि व्यक्ति की सोच उन्नत हो, दृष्टि व्यापक और दर्शन शुद्ध हो। आजकल लोग दर्शन पर नहीं, प्रदर्शन पर अधिक ध्यान देते हैं। लोगों की सोच अच्छे दर्शन, अच्छी कला या श्रेष्ठ जीवन जीने के स्वरूप पर नहीं है। दर्शन तो यह कहता है कि अगर सिर के बाल सफेद हो गए हैं तो जीवन-दर्शन बताता है केश पके, तन प्राण थके, अब राग-अनुराग को भार उतारो, मोह महामद पान कियो, अब आतम-ज्ञान को अमृत धारो। जीवन के अन्तिम अध्याय में, त्याग करो और दीक्षा धारो, पुत्र को सौंप के राज और पाट, करो तप आपनो जनम सुधारो ।। ये पके हुए बाल इस बात का संकेत हैं कि जागो, अब जीवन ढलने को आ गया है। कहते हैं दशरथ के सिर पर एक बाल सफेद आ गया था तो वे वैराग्य की ओर बढ़ गए। उन्होंने निर्णय लिया कि अब वे अपने पुत्र राम को राज्य-भार सौंपकर स्वयं वानप्रस्थ-जीवन स्वीकार लेंगे। यह संयोग की बात है कि वे ऐसा न कर पाए। होनी ने उनके साथ कुछ और करवा दिया, पर सिर के एक सफेद बाल ने उन्हें जीवन का बोध करवा दिया कि अब जीवन के ढलने की शुरुआत हो रही है। दर्शन तो यह सिखाता है कि तुम्हें अपनी मुक्ति के लिए जो करना है उसे करने के लिए प्रयत्नशील हो जाओ। घर-गृहस्थी को खूब जी २०२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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