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________________ अंदर भाव भी जग गये कि वह संन्यास ले ले। उसने अपने गुरु से कह भी दिया कि उसके बहुत प्रबल भाव हो रहे हैं कि वह संन्यास ले ले और हरिभजन में लग जाए। पर क्या करे घर वाले मानते नहीं, कर्तव्यों से बँधा है, माता-पिता कहते हैं अगर वह महाराज बन गया तो वे भूखे मर जाएँगे। पत्नी कहती है कि तुम संन्यासी हो गए तो मैं आत्महत्या कर लूँगी। भाई लोग भी विरोध करते हैं। अब क्या करूँ, मेरे भाव तो बहुत बनते हैं, पर कुछ हो नहीं पाता । गुरुजी ने पूछा - क्या तू सचमुच संन्यासी होना चाहता है ? कहा कि - मेरे भाव तो बहुत हैं। तब गुरु ने कहा - इधर मेरे पास आ । मैं तुझे एक प्रयोग सिखाता हूँ। आज देख ही लेते हैं कि तेरे भाव प्रबल हैं या तेरे घरवालों के। गुरु ने उसे प्राणायाम का एक प्रयोग सिखा दिया और वह घर जाते ही आँगन के बीच में धड़ाम से गिर पड़ा। घरवालों ने देखा कि अरे यह क्या हो गया। सब तरफ से चेक किया तो न दिल धड़क रहा था और न ही श्वास चल रही थी, नब्ज भी बंद । घर में मातम छा गया। पड़ोसी इकट्ठे हो गए । श्मशान ले जाने की तैयारी होने लगी। जैसे ही उसे कफन ओढ़ाने लगे तभी वे महाराज वहाँ प्रगट हो गए और नमो नारायण, नमो नारायण कहते हुए घर में प्रविष्ट हो गए। आते ही पूछा - क्या हो गया ? बताया कि - देखिए आपका शिष्य मर गया। महाराज ने कहा - अरे, मेरा चेला मर गया, ऐसा कैसे हो सकता है। वह तो मुझे बहुत प्रिय था। वह कैसे मर सकता है ? हटो, हटो, सब लोग हटो, मैं देखता हूँ। रोते हुए सब लोग चुप होकर एक किनारे हट गए । महाराज ने छाती पर हाथ रखा, नब्ज पर हाथ रखा और थोड़ा-सा गम्भीर होते हुए कहा - मुझे लगता है यह युवक जीवित हो सकता है। सब एकदम बोले - क्या बात करते हैं, क्या ऐसा हो सकता है, आप तो बड़े चमत्कारी हैं। अद्भुत, अगर आप ऐसा कर सकें तो पूरा परिवार आपका जीवन भर ऋणी रहेगा। महाराज नाटकबाजी करने लगे। कहा - एक कटोरी गंगाजल ले आओ। गंगाजल आया, उन्होंने कुछ मंत्र पढ़े और उस युवक के शरीर की पाँच-सात परिक्रमाएँ लगाईं, कटोरी को फूंक मारी और कहा – यह युवक अभी इसी समय जिंदा हो जाएगा बशर्ते इस कटोरी के जल को कोई दूसरा व्यक्ति पी ले। पर ध्यान रहे, जो भी इसे पिएगा वह मर जाएगा और यह युवक जीवित हो जाएगा। १८८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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