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________________ माहौल में व्यक्ति का जीना नदी के जल के बिखरने के समान ही कहलाएगा । अगर हम अपनी जीवन - नदी को गंगासागर तक ले जाना चाहते हैं तो व्रत, नियम, मर्यादा के तटों के बीच में संतुलित ढंग से बहना होगा । हम देखते ही हैं थोड़ा-सा भी तप-त्याग करें तो पति कह देते हैं, नहीं-नहीं कुछ करने की ज़रूरत नहीं, चलो बैठो और खाना खा लो, अन्तराय दे देते हैं, बाधक बन जाते हैं। अपने को वापस खींच लिया करते हैं । मैंने सुना है कि एक कुत्ता तीर्थयात्रा करने के लिए निकला। रास्ते में उसे एक समझदार व्यक्ति मिला। उसने पूछा- कहो, कहाँ जा रहे हो ? जनाब, तीर्थयात्रा पर जा रहा हूँ - कुत्ते ने कहा । आदमी चौंका कि कुत्ता भी तीर्थयात्रा के लिए निकला। उसने फिर पूछा - कब तक कर आओगे । कुत्ते ने कहा- भाई, अब तक तो तीन दफा यात्रा हो चुकी होती पर क्या करूँ जहाँ भी जाता हूँ, मेरी अपनी बिरादरी के लोग मेरी टाँग पकड़कर मुझे वापस खींच लाते हैं तो आगे की तरफ बढ़ नहीं पाता । ये जो अपनी बिरादरी के लोग होते हैं, जो अपने कहलाते हैं वही आध्यात्मिक उन्नति में सबसे बड़े बाधक बन जाते हैं । दूसरे कोई बाधक नहीं बनते। जिन्हें हमने अपना नाम दे रखा है कि ये मेरे अपने हैं ये ही हमारे लिए बाधक बन जाते हैं। आपकी धर्मबहिन बाधक नहीं बनेगी, पर धर्मपत्नी बाधक बन जाती है। एक दिन की बात है । मैं मजाक के मूड में था। किसी ने मुझसे पूछा - गुरुजी ! बहिन और धर्मबहिन का मतलब तो समझ में आता है, पर पत्नी और धर्मपत्नी का मतलब समझ में नहीं आया । बहिन और धर्मबहिन तो दो होती हैं लेकिन पत्नी और धर्मपत्नी भी क्या दो होती हैं ? मैं मजाक के मूड में था, मैंने कहा - जो पतन की ओर ले जाए वह पत्नी और जो धर्म के रास्ते पर ले जाए वह धर्मपत्नी । किसी भी व्यक्ति के कारण अगर किसी के भीतर कोई रंग चढ़ा, अध्यात्म का, धर्म का रंग चढ़ा तो ये जो अपने होते हैं वही बाधाएँ खड़ी कर देते हैं । लेकिन जिन्हें समझ आ जाती है वे इन अपनों से ऊपर उठ जाते हैं । ये अपने भी तभी तक अपने होते हैं जब तक इनके स्वार्थों की पूर्ति होती रहती है। एक युवक की कहानी है। वह किसी महाराज के पास सत्संग सुनने जाया करता था । उसके Jain Education International For Personal & Private Use Only १८७ www.jainelibrary.org
SR No.003880
Book TitleMahavir Aapki aur Aajki Har Samasya ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages342
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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