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करने निकल जाएगा। घर-गृहस्थी में उलझी महिला भी झट से आठ उपवास करने को तैयार हो जाती है। यह कौन-सी ताकत है ? यह श्रद्धा की ही ताकत है कि भरी सर्दी में भी व्यक्ति गंगा जी में डुबकी लगाने को तैयार हो जाता है। श्रद्धावश व्यक्ति हिमालय स्थित मानसरोवर झील के बर्फ जैसे पानी में भी डुबकी लगा लेता है। महावीर की भाषा में यह चौथा धरातल है जो सत्य के प्रति श्रद्धा का धरातल है। सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् तत्त्व के प्रति श्रद्धा । यही है जो हमें आगे बढ़ाती है।
महावीर हमें पाँचवाँ धरातल ‘मर्यादा और संयम' देते हैं। जीवन में यम-नियम-व्रत को धारण करने का धरातल । अब व्यक्ति व्यक्ति न रहा, गृहस्थ गृहस्थ न रहा। अब वह श्रावक हो गया। उसे खास संज्ञा दी जा रही है कि अब वह श्रावक हो गया है। श्रावक का अर्थ है - श्र = श्रद्धा, व = विवेक, क = क्रिया अर्थात् श्रद्धा सहित विवेकपूर्वक क्रिया करने वाले व्यक्ति को श्रावक कहा जाता है। पाँचवें धरातल पर व्यक्ति राम का पथिक बना, स्वयं को थोड़ा मर्यादा में लेकर आया कि वह स्वयं को एकपत्नी व्रत तक सीमित रखे। किसी प्रकार की सामान्य हिंसा अपने हाथ से न होने दे। जहाँ तक संभव होगा झूठ नहीं बोलेगा, जहाँ तक संभव होगा चोरी नहीं करेगा, व्यभिचार नहीं करेगा, अनावश्यक परिग्रह और संग्रह अपने पास नहीं सँजोएगा। यह वह धरातल है जो इन्सान को एक खास व्रत, खास परिधि, खास सीमा, खास मर्यादा में आने को प्रेरित करता है। जैसे समुद्र अपनी सीमा में रहता है, जैसे नदी दो किनारों में बँधी रहती है वैसे ही व्यक्ति की चेतना, उसकी कार्य-प्रणाली, उसकी जीवन-शैली भी मर्यादा की लक्ष्मणरेखाओं में अपने आपको बाँधने का प्रयत्न करती है। यह हमने जो इस बिखरे हुए पानी को दो तटों के बीच में लाकर बाँधने का प्रयत्न किया है इसी का नाम 'श्रावक गृहस्थ-धर्म' है और यही इन्सान का पाँचवाँ धरातल है।
__ ज्यों-ज्यों अन्तर्-बोध गहरा होगा, हमारी स्वयं के प्रति जिज्ञासा, अभीप्सा पैदा होगी, त्यों-त्यों हम स्वयं को नियम और मर्यादा में लाना चाहेंगे। अन्यथा आज के युग में तो चारों ओर उन्मुक्त भोग चल रहा है, सेक्सी वातावरण बन चुका है, अपराध, आतंकवाद, अस्त्र-शस्त्र का माहौल बन चुका है। ऐसे
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